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देशीगण-ताल-कोलान्वय के माधनन्दि भारत को सौंप दिया गया। इस लेख को दासोज नामक व्यक्ति ने उत्कीर्ण किया था। लेख में अलिपुर को जगदंकमल्ल-बसदि आदि कई अन्य प्रसिद्ध जिनमन्दिरों का भी उल्लेख हुआ है। दान का उद्देश्य जिनेन्द्र की पूजा-अर्चा, निरन्तर आहारदान की व्यवस्था इत्यादि था। इस देव-शास्त्र गुरुभक्त शान्तिनाथ के पिता गोविन्दराय थे, ज्येष्ट भ्राता कन्नपार्य भी लक्ष्मनृप की सेवा में एक उच्चपदस्थ अधिकारी थे और, अनुज चारभूषण रेवण विद्धान एवं कवि थे।
महारानी माललदेवी कुन्तल देश में बनवासि के नरेश कदम्ब कुल-मार्तण्ड कीर्तिदेव थे, जो मयूरवमन कदम्ब की सन्तति में उत्पन्न हए थे। कीर्तिदेव की अग्रमहिषी माललदेवी थी जो रूप और गुणों में गिरिजा, सीता, रति और रुक्मिणी के समान थी। यह परम जिनभक्त और धर्मपरायण महिलारल थी। पुरुबिनपति ऋषभदेव उसके कुलदेवता थे और कुन्दकुन्दान्वय-मूलसंघ-कारमण-लिन्त्रिाणिगच्छ के पद्मनन्दिसिद्धान्त उसके गुरु थे। बनवासि देश में अनेक आकर्षणों से युक्त कुम्पदूर नाम का नगर था, जिसके निवासी एक सहस्र ब्राह्मण अपनी विधा और भक्ति के लिए विख्यात थे। सुप्रसिद्ध बन्दनिके तीर्थ से सम्बद्ध जिनालयों में कप्पटूर का ब्रह्मजिनालय अग्रणी था। महारानी ने इस अतिभव्य पाश्चदेिव त्यासस्य का निर्माण कराकर उपर्युक्त मण्डलाचार्य पद्यमन्दि-सिद्धान्त से उसकी प्रतिष्ठा करायी। लइनन्तर स्थानीय ब्राह्मणों को बुलाकर उसका नाम 'ब्रह्म-जिनालय घोषित कराया। उसने कोटीवर मूलस्थान के तथा अन्य 18 देवस्थानों के आचार्यों को और बनवासि के मधकंश्वराचार्य को भी आमन्त्रित करके यह महोत्सव किया था। ये सब आचार्य जैनतर धर्मों के थे। उन्हें 5049 होन (स्वर्ण मुद्राएँ) देकर उसने उनसे कुछ भूमियाँ भी प्राप्त की थी। स्वयं महाराज कीर्तिदेव से एक पूरा ग्राम प्राप्त किया था। वह ग्राम तथा उक्त समस्त भूमियाँ जिनेन्द्रदेव की नित्यपूजा एवं ऋषियों के आहार आदि की सुव्यवस्था के लिए पादप्रक्षालनपूर्वक महारानी ने उक्त गुः पचनन्दि-सिद्धान्त को समर्पित कर दी थी। यह दान 10765 ई. को अक्षयतृतीया के पवित्र पर्व पर दिया गया था। सिडणि नाम का जो नाम राजा से प्राप्त किया गया था, एडेनाडु का सर्वाधिक सुन्दर स्थान था। इस दानशासन का लेखक बम्मर हरिमाया था। लेख में राजा के पराक्रम और महारानी माललदेवी की जिनक्ति आदि की प्रभूत प्रशंसा है। बनवासि प्रदेश के एक भाग पर प्राचीन कदम्बों के वंशजों का छोटा-मोटा राज्य अभी तक चला आ रहा था।
प्रतिकण्ठ सिंगय्य-चालुक्य सम्राट् साहसोत्तुंग विक्रमादित्य त्रिभुवनमल्लदेव के महासेनाधिपति महाप्रधान दण्डनायक बमदेव का कृपापात्र अनुचर था और किसी प्रतिष्ठित अधिकारी पद पर नियुक्त था। स्वयं बर्मदेव उस समय वनवासि-12,000, सान्तलिगे-
10 और 16 अग्नहारों का रक्षक एवं शासक था, और अपने प्रशासन केन्द्र बल्लिगाम्बे में निवास करता था। वह बड़ा पराक्रमी, गुणवान और उदाराशय
142 :: प्रमुख एतिहासिक जैम पुरुष और महिला