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उधर स्वयं सम्राट् ने राजधानी को सुन्दर प्रासादों, सजपथों, सरोवरों, उद्यानों आदि से अलंकृत करने में कुछ यर्ष मन लगाया। वह स्वयं वस्तुतः एक शान्तिप्रिय, विद्यारसिक एवं धर्मात्मा नरेश था। साम्राज्य में युटु चलते रहे, विद्रोह और विग्रह भी होते रहे, किन्तु उसके सुदक्ष एवं स्वामिभक्त अनुचरों और सामन्त-सरदारों की तत्परता के कारण साम्राज्य की समृद्धि और शान्ति में कोई उल्लेखनीय विज नहीं पड़ा, उसकी शक्ति, वैभव एवं प्रताप में उत्तरोत्तर वृद्धि ही हुई। तत्कालीन अरब
यात्री सुलेमान सौदागर (851 ई.) के अनुसार उस काल में संसार भर में सर्वमहान् ...सम्राटु भारत का दीर्घायु बलहरा' (बल्लाभराय अमोघवर्ष), चीन का सम्राट्, बगदाद
को खलीफा और रूम (तुको) को सुलान, यह चीर ही थे। अलइद्रिसि, अबुद, मसूदी, इलहीकल आदि अन्य अरब सौदागरों ने भी अमोघवर्ष के प्रताप एवं वैभव की तथा उसके साम्राज्य की समृद्धि एवं शक्ति की भरपूर प्रशंसा की है।
सुलेमान यह भी लिखता है कि भारतवर्ष का प्रत्येक पति स्वयं अपने राज्य में रहता हुआ भी, उसका (अमोघवर्ष का) आधिपत्य स्वीकार करता था। उसके पास हाथी और पुष्कल धन सम्पत्ति थी। यह शराब को छूता भी नहीं था और अपने सैनिकों तथा कर्मचारियों को नियमित वेतन देता था। उसके राज्य में पूजा की सम्पत्ति सुरक्षित थी, चोरी और ठगी को कोई जानता भी नहीं था, और व्यापार-व्यवसाय को प्रभूत प्रोत्साहन था तथा विदेशियों के प्रति आदरपूर्ण अच्छा व्यवहार होता था।" अलइद्रिसि लिखता है कि राष्ट्रकूट राज्य अतिविस्तृत, चना वसा हुआ, बढ़े-घड़े व्यापार वाला और बहुत उपजाऊ था। जनता अधिकांशतः शाकाहारी थी, चायल (धान), मटर, फलियां, दालें, साग-सब्ही, फल आदि उनके नित्य के भोज्यपदार्थ थे।न्ये भारतीय स्वभावतः न्यायप्रिय हैं, अपने व्यवहार में भी सदा न्यायपूर्ण ही रहते हैं। सचाई, ईमानदारी, किये गये अनुबन्धों में अपने वचन का दृढ़तापूर्वक पालन इत्यादि गुणों के लिए ये लोग सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। इसी से अजनबी विदेशी इनके देश में बड़ी संख्या में दौड़-दौड़कर आते हैं। फलस्वरूप इस देश की समृद्धि में बढ़ोतरी ही होती है।" अधुसैद भी लिखता है कि, "बलहरा सम्पूर्ण भारतवर्ष का सर्वाधिक प्रतिष्ठित एवं प्रतापी नरेश है और अन्य सब सजे, यपि उनमें से प्रत्येक अपने अपने राज्य में स्वतन्त्र है और उसका पूर्णतया स्वामी है, इसकी महत्ता स्वीकार करते हैं और उसे सर्वोपरि मानते हैं।" इसके अतिरिक्त, यह नरेन्द्र गुणियों और विद्वानों का प्रेमी तो था ही, स्वयं भी अच्छा विद्वान् और कवि था। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़ी और तमिल भाषाओं में विविध विषयक साहित्य सूजन को उसने प्रभूत प्रोत्साहन दिया। इसकी राजसभा विद्वानों से भरी रहती थी।
इस विषय में भी प्रायः कोई मतभेद नहीं है कि सम्राट् अमोमवर्ष प्रथम जैनधर्म का अनुयायी, जैन गुरुओं का भक्त, और एक उसम श्रावक श्वा। प्रो. रामकृष्ण
1118 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ