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________________ राष्ट्रकूट-चोल-उत्तरवर्ती चालुक्य-कलचुरि दक्षिणापथ के प्राचीन राष्ट्रकों (राष्ट्रिकों) के वंशज ये राष्ट्रकद स्वयं को चन्द्रवंशी क्षत्रिय कहते थे। उनको एक प्रारम्भिक शाखा लहलूर में स्थापित थी जो सातवीं शती के पूर्वार्ध में बरार प्रदेश के एलिचपुर में जा बसी और तभी से उसका अभ्युदय प्रारम्भ हुआ। उसका प्रथम जात राजा दन्तिवपन था। उसकी पाँच्थवी पीढ़ी में इन्द्र द्वितीय हुआ, जिसकी पत्नी एक चालुक्य राजकुमारी थी। इन दोनों का पुत्र दन्तिदुर्ग-खण्डावालोक-वैरमेध क्षीं शती के प्रथम पाद के लगभग अपने पिता का उत्तराधिकारी हु। अब तक ये राष्ट्रकूट राजे वातापी के चालुक्यों के करद सामना थे। दन्तिदुर्म अत्यन्त चतुर, साहसी और महत्वाकांक्षी था। चालुक्यों की गिरती दशा का उसने प्रभूत लाभ उठाया। नासिक विषय (जिले) के मयूरखगड़ी दुर्ग को उसने अपनी प्रधान छाननी और एलोरा को राजधानी बनाया । एलोरा उस समय भी जैन, शैव, वैष्णव और बौद्ध चारों ही धर्मों और संस्कृतियों का संगमस्थल था। सनु 858 में रचित धर्मोपदेशमाला में एक और अधिक पुरानी घटना का उल्लेख है कि एक समय समय नामकं (श्वेताम्बर) मुनि भृगुकच्छ से चलकर एलटर मगर आये थे और उस नगर की प्रसिद्ध दिगम्बर वसही (बसति, मन्दिर या अधिष्ठान) में ठहरे थे, जिससे प्रतीत होता है कि राष्ट्रकूटों के शासन के प्रायः प्रारम्भ से ही एलोरा दिगम्बर आम्नाय का प्रसिद्ध केन्द्र था। इसका कारण यही है कि दन्तिदुर्ग आदि राष्ट्रकूट नरेश सर्वधर्म-समवशी थे और उनका व्यक्तिगत या कुलधर्म शैव, वैष्णवादि होते हुए भी वे जैनधर्म के विशेष पोषक एवं संरक्षक रहे थे। सन 752 ई. में दन्तिदुर्ग ने कीर्तिवर्मन चालुक्य को पराजित करके उसके विरुद अपना लिये और चार-पाँच वर्ष के भीतर ही सम्पूर्ण चालुक्य साम्राज्य पर अधिकार कर लिया तथा स्वयं को सम्राट् घोषित कर दिया। उसने अन्य अनेक राजाओं को पराजित करके अपने अधीन किया, जिनमें चित्रकूट (चित्तौड़) के मौर्य राजा राहापदेव को पराजित करके उसका श्वेतच्छत्र और श्रीवल्लभ उपाधि स्वयं ग्रहण कर ली। सम्भवतया तभी राहप्प के अनुज वीरप्पदेव, जो जैन मुनि होकर स्वामी वीरसेन के नाम से विख्यात हुए, राष्ट्रऋट-चोल-उतरवी चालुक्य कल्धुरि :: 133
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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