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भाती ई. के अन्त तक गि के इन पूर्वी चालुक्यों की सत्ता का भी अन्त हो गया। सभी से उस प्रदेश में जनधर्म का भी हास होने लगा।
__ महारानी कुन्दब्दमहाराज बिमलादित्य की पट्टरानी थी। वह संजौर के राजराजा चोल की पुत्री और राजेन्द्र चोल की बहन थी जो बड़ी धर्मात्मा और जिनभक्त थी। सम्भवतया इस रानी के प्रभाव से ही राजा भी जैनधर्म का अनुयायी हुआ था। महारानी कुन्दब्बे ने अपने भाई राजेन्द्र चोल के राज्य में पवित्र पर्वत तिरुमले के शिखर पर कुन्दब्बे-जिनालय नाम का भव्य मन्दिर बनवाया था, और उसके लिए ग्राम आदि दान दिये थे। लेख राजेन्द्र चोल के राज्य के 12वें वर्ष, सन् 1028 ई. का है। लगता है kिxकुछ- पूर्व निसानातिया से गहर- ::TINA
और विधवा महारानी कुन्दको अपने मायके जाकर अपने भाई के आश्रम में रहती हुई धर्मसाधनपूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी।
112 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और पहिला