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शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने तैयार किया था और पं० इन्द्रचन्द्रजी शास्त्री देहली ने परिशिष्ट रूप में कठिन स्थलों पर टिप्पण लिख कर उसे और सरलता प्रदान कर दी थी। उस प्रकाशन से छात्रों को अच्छी सुविधा देख कर पं० भारिल्लजी से ही प्रमाणमीमांसा के हिन्दी अनुवाद के लिये आग्रह किया गया। पंडितजीने कुछ ही दिनों में इस अनुवाद को भी तैयार कर दिया। जब छात्रों को यह मालूम हुवा कि प्रमाणमीमांसा हिन्दी-अनुवाद के साथ पाथर्डी से प्रकाशित हो रही है, तब लगभग ५० प्रतियों के लिए आर्डर पुस्तक पूर्ण होने से बहुत पहले ही प्रकाशन विभाग को प्राप्त हो गये । इस लिये हमारा उत्साह और बढ़ गया । अब तीसरे प्रकाशन के लिये पुस्तक का चयन शीघ्र ही कर के हम यथासंभव उसे भी अविलम्ब प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे । प्रकाशनविभाग इन कठिनतम ग्रन्थों के अध्ययन में सुविधा के लिये शास्त्री और आचार्य परीक्षा के पाठ्य ग्रन्थों का सहायक ग्रन्थ दो जिल्दों में प्रकाशित करने का विचार
कर रहा है।
- इस ग्रन्थ के प्रकाशन में जिन दाताओं का आर्थिक सहयोग उपयुक्त हुवा है,उनको शुभ नामावलि इस प्रकार है६२१)श्री केशरचन्दजी कचरदासजी बोरा
आश्वी ५०१), चन्द्रभानजी रूपचन्दजी डाकलिया
श्रीरामपुर ५०२), तिलोकचन्दजी खूपचन्दजी गुन्देचा
चाँदा ५०१), केशरचन्दजी गुलाबचन्दजी मुणोत
नेवासा ५००), कचरदासजी मोहनलालजी लोढा
अहमदनगर ५०१), भागचन्दजी शोभाचंदजी दूगड
अमलनेर ५०१), रूपचन्दजी माणकचंदजी नाहर
रांजनगाँव ५००), भैरूलालजी दीपचन्दजी गाँधी
लोनावला ३५२), फकीरचन्दजी बालारामजी गुगलिया
चिंचोडी-शिराल २५१), कचरदासजी हिम्मतमलजी भलगट
अहमदनगर २०१), कुंदनमलजी लुंकड़ की सुपुत्री सायरबाई
बैंगलोर २०१), कल्याणजी भाई कपूरचन्दजी शाह
बंबई २०१), सकल जैन श्री संघ
आश्वी १५१), जसराज कालामाई लाठिया
मूर्तिजापुर १५१), नेमीचन्दजी जवाहरलालजी लोढा
सिंधनूर १५१), छोटमलजी नेमीचन्दजी
लोहसर-खांडगांव १५१), इचरजबाई झुंबरलालजी गुगले
अन्धेरी प्रस्तुत प्रकाशम पर पं. दलसुख मालवणियाजी ने प्रास्ताविक लिखने की कृपा की एतदर्थ वे शतशः धन्यवाद के पात्र हैं, जिन दाताओं के आर्थिक सहयोग से यह पुस्तक प्रकाशित की गई है उनका हृदय से आभार मानते हैं।
बदरीनारायण शुक्ल