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प्रकाशकीय
प्रस्तुत पुस्तक जन जगत् के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य श्री हेमचन्द्र को बहुमूल्य कृति है, भाकृत्या अतीव संक्षिप्त होने पर भी प्रकृत्या महतो महीयान् की उक्ति को चरितार्थ करने वाली है। मिस्सन्देह कुशल आचार्य ने अपनी कुशलताको पराकाष्ठा प्रस्तुत कर दी है। प्रमाणशास्त्र का यह श्रेष्ठ ग्रन्थ माना जाता है, इसी लिये पाथर्डी परीक्षा बोर्ड की उच्चतम परीक्षा में यह निर्धारित है।
परीक्षाबोर्ड के संचालकों ने पाठयग्रन्थों के प्रकाशन की व्यवस्था बहुत पहले प्रारंभ कर दी थी, इससे प्रारंभिक ४ परीक्षाओंके परीक्षार्थियों के लिये पर्याप्त सुविधा प्राप्त हो गई। किन्तु बोर्ड की उच्च परीक्षाओं के लिये निर्धारित ग्रन्थों का प्रकाशन बहुव्ययसाध्य होनेसे निजी प्रकाशन न हो सकने के कारण उन ग्रन्थों की दुर्लभता से प्रौढ परीक्षार्थी बहुत ही कठिनाई का अनुभव कर रहे थे।
बोर्ड के सदुपदेष्टा महाराज श्री १००८ बालब्रह्मचारी पंडितरत्न पूज्य श्री आनन्दऋषिजी महाराज सा. का चातुर्मास सन् १९६१ में आश्वी जिला अहमदनगर में हुवा था। उस चातुर्मासमें स्थानीय सेठजी दानवीर श्री केशरचन्दजी कचरदासजी बोरा ने संघसेवा का अन्तः करण से लाम लिया था। वर्शनार्थियों को अच्छी उपस्थिति होती थी, सभी के स्वागत का
ध सेठजीने उदात्त मावनासे किया था।
___ इस चातुर्मास में कोई विशिष्ट कार्य होना चाहिये, ऐसा उत्साह कुछ विद्यारसिक महानुभावों के अन्तः करण में प्रस्फुरित हुवा, पूज्य महाराज श्री के समक्ष यह शुभ भावना व्यक्त की गई, तब महाराज श्री ने पाथर्डी बोर्ड के प्रौढ़ परीक्षार्थियों को कठिनाई को दूर करने की ओर इन ज्ञान प्रेमियों का ध्यान आकृष्ट किया। फलस्वरूप बोर्डचालकों से परामर्श करके 'उच्च परीक्षा पाठ्यपुस्तक प्रकाशन विभाग' इस नामसे बोर्ड के अन्दर एक महत्त्वपूर्ण उपयोगी विभाग नियत किया गया । इस विभाग में कुछ ही दिनों में दाताओं की उदास्ता से अच्छा सहयोग मिला और पहले दर्शनग्रन्यों के प्रकाशन का निश्चय किया गया।
उक्त विभाग की तरफ है. सवप्रथा महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी म० को जैन तर्कभाषा (हिन्दी अनुवाद सहित) का प्रकाशन किया गया। यह अनुवाद सुप्रसिद्ध विद्वान पं०