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प्रमाणमीमांसा ४८-'नियमः' अविनाभावस्तस्य 'असिद्धौ' 'अनैकान्तिकः' यथा अनित्यः शब्दः प्रमेयत्वात्, प्रमेयत्वं नित्येऽप्याकाशादावस्तीति । सन्देहे यथा असर्वज्ञः कश्चिद् रागादिमान् वा वक्तृत्वात् । स्वभावविप्रकृष्टाभ्यां हि सर्वज्ञत्ववीतरागत्वाभ्यां न वक्तृत्वस्य विरोधः सिद्धः, न च रागादिकायं वचनमिति सन्दिग्धोऽन्वयः । ये चान्येऽन्यरनकान्तिकभेदा उदाहृतास्त उक्तलक्षण एवान्तर्भवन्ति । पक्षत्रयव्यापको यथा अनित्यः शब्दः प्रमेयत्वात् पक्षसपक्षव्यापको विपक्षकदेशवृत्तिर्यथा गौरयं विषाणित्वात् । पक्षविपक्षव्यापकः सपक्षकदेशवृत्तिर्यथा नायं गौः विषाणित्वात् । पक्षव्यापकः सपक्षविपक्षेकदेशवृत्तिर्यथा अनित्यः शब्दः प्रत्यक्षत्वात् । पक्षकदेशवृत्तिः सपक्षविपक्षव्यापको यथा न द्रव्याण्याकाशकालदिगात्ममनांसि क्षणिकविशेषगुणरहितत्वात् । पक्षविपक्ष
४८-यहाँ नियम का अभिप्राय है अविनाभाव । वह सिद्ध न हो तो हेतु अनैकात्तिक हो जाता है। जैसे शब्द अनित्य है. क्योंकि वह प्रमेय है । यहाँ प्रमेयत्व हेतु का अविनाभाव अनित्यता साध्य के साथ सिद्ध नहीं है,क्योंकि प्रमेयत्व आकाश आदि नित्य पदार्थों में भी पाया जाता है।
साध्य के साथ हेतु के अविनाभाव में यदि सन्देह हो तो भी हेतु अनैकान्तिक होता है । जैसे-अमुक पुरुष असर्वज्ञ अथवा रागादिमान है, क्योंकि वक्ता है । स्वभाव से ही विप्रकृष्ट सर्वज्ञता और वीतरागता के साथ वक्तृत्व का विरोध सिद्ध नहीं है अर्थात् जो वक्ता होता है वह सर्वज्ञ नहीं होता या वीतराग नहीं होता, ऐसा अविनाभाव निश्चित नहीं है,क्योंकि वचन रागादि या असर्वज्ञता का कार्य नहीं है अतएव यहाँ वक्तृत्व और असर्वज्ञता को व्याप्ति संदिग्ध है । (इस कारण वक्तृत्व हेतु अनैकान्तिक है।)
__ अन्य लोगों ने अनेकान्तिक हेत्वाभास के जो अन्य भेद कहे हैं वे सब पूर्वोक्त लक्षण में ही अन्तर्गत हो जाते हैं। वे भेद इस प्रकार हैं-(१)पक्ष, सपक्ष,विपक्ष में व्याप्त हो कर रहने वाला जैसे-शब्द अनित्य है, क्योंकि प्रमेय है । (यहाँ प्रमेयत्व हेतु पक्ष शब्द में सपक्ष घटादि में और विपक्ष आत्मा आदि में व्याप्त है) । (२)-पक्ष और सपक्ष में व्याप्त तथा विपक्ष के एक देश में रहने वाला, जैसे यह पशु गौ है क्योंकि संग वाला है । (यहाँ शृंगवत्त्व हेतु सब गौओं में रहता है किन्तु विपक्ष में कहीं रहता है, कहीं नहीं-महिष आदि में रहता है, अश्वादि में नहीं । (३)पक्ष और विपक्ष में व्यापक तथा सपक्ष के एक देश में रहने वाला, जैसे-यह गौ नहीं है, क्योंकि सींग वाला है । (यहाँ हेतु पक्ष में व्याप्त है, विपक्ष गौओं में व्याप्त है किन्तु सपक्ष के एक देश में रहता है-महिषादि में है, अश्वादि में नहीं। )(४)-पक्ष में व्यापक, सपक्ष और विपक्ष के एक देश में रहने वाला, यथा-शब्द अनित्य है क्योंकि प्रत्यक्ष है । (यह हेतु पक्ष शब्द में व्यापक है, सपक्ष द्वयणुकादि में नहीं रहता घटादि में रहता है, विपक्ष सामान्य में रहता है, आकाश में नहीं।) (५) पक्ष के एक भाग में रहने वाला किन्तु सपक्ष और विपक्षमें व्यापक, जैसे-आकाश कााल, दिक और मन द्रव्य नहीं हैं क्योंकि क्षणिक विशेष गुण से रहित हैं। (यह हेतु पक्ष के एक देश में नहीं रहता, क्योंकि आत्मा में सुख और आकाश में शब्द क्षणिक विशेष गुण पाये जाते हैं, कालादि में हेतु पाया जाता है सपक्ष और विपक्षव्याप्त हो कर रहता है क्योंकि उनमें