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प्रमाणमीमांसा
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देशवृत्तिविपक्षव्यापको यथा नित्या पृथ्वी कृतकत्वात् । पक्षविपक्षकदेशवृत्तिर्यथा नित्यः शब्दः प्रयत्नानन्तरीयकत्वात् । असति सपक्षे चत्वारो विरुद्धाः । पक्षविपक्षव्यापको यथा आकाशविशेषगुणः शब्दः प्रमेयत्वात् । पक्षव्यापको विपक्षकदेशवृत्तियथा आकाशविशेषगुणः शब्दो बाह्येन्द्रियग्राह्यत्वात् पक्षकदेशवृत्तिविपक्षव्यापको यथा आकाशविशेषगुणः शब्दोऽपदात्मकत्वात् । पक्षविपक्षकदेशवृत्तिर्यथा आकाशविशेषगुणः शब्दःप्रयत्नानन्तरीयकत्वात् । एषु च चतुर्षु विरुद्धता,पक्षकदेशवृत्तिषु,चतुर्यु पुनरसिद्धता विरुद्धता चेत्युभयसमावेश इति ॥२०॥
४७-अनैकान्तिकस्य लक्षणमाहनियमस्यासिद्धौ सन्देहे वाऽन्यथाप्युपपद्यमानोऽनैकान्तिकः ॥२१॥ है। किन्तु घटादि विपक्षों में रहता है और द्वयणुक तथा सुख-दुःख आदि विपक्षों में नहीं रहते अतः विपक्ष में कहीं रहता है कहीं नहीं (३) पक्षक-देशवृत्ति-विपक्षव्यापक--जो हेतु पक्षके एक भाग में रहे. दूसरे भाग में न रहे. किन्तु विपक्षमें व्याप्त हो कर रहे। जैसे पृथ्वी नित्य है क्योंकि कृतक है। (यहाँ कृतकत्व हेतु परमाणुरूप पृथ्वी में नहीं रहता, कार्यरूप पृथ्वी में रहता है अतः पक्षकदेशवृत्ति है, किन्तु विपक्ष-अनित्य पदार्थों में व्याप्त है )। (४) पक्षविपक्षकदेशवृत्ति -शब्द नित्य है, क्योंकि वह प्रयत्नान्तरीयक है। (यह हेतु पक्ष -शब्द के एक देश में और विपक्ष (अनित्यपदार्थों के भी एक देश में रहता है अर्थात् घटादि में रहता है, विद्युत् आदि में रहता । सपक्ष की अविद्यमानता में भी चार भेद होते हैं
(१) पक्षविपक्षव्यापक-शब्द आकाश का विशेष गुण है,क्योंकि प्रमेय है । (यहाँ प्रमेयत्व हेतु शब्द में व्याप्त है और विपक्ष घटादि में भी व्याप्त होकर रहता है। सपक्ष यहाँ संभव नहीं है क्योंकि आकाश का शब्द के अतिरिक्त दूसरा कोई विशेष गुण नहीं माना गया है । इसी प्रकार आगे समझ लेना चाहिए)। (२) पक्षव्यापक विपक्षकदेशवृत्ति-शब्द आकाश का विशेष गुण है क्योंकि बाह्य इन्द्रिय (श्रोत्र) के द्वारा ग्राह्य है। यहां बाह्येन्द्रिय ग्राह्यत्व पक्ष -शब्द में व्यापक रूप से रहता है और विपक्ष में कहीं रहता है कहीं नहीं, घटादि में रहता है, सुख-दुःख में नहीं) । (३) पक्षकदेशवृत्ति-विपक्षव्यापक-शब्द आकाश का विशेष गुण है, क्योंकि वह अपदात्मक है। (यहाँ अपदात्मकत्व मेघादि की ध्वनि में रहता है, किन्तु पदरूप शब्दसंयोग में नहीं रहता, अतः पक्ष के एक देश में रहता है किन्तु विपक्ष में व्यापक रूप से रहता है,क्योंकि शब्देतर सभी पदार्थ अपद रूप ही होते हैं)। (४) पक्षविपक्षकदेशवृत्ति-शब्द आकाश का विशेष गुण है क्योंकि प्रयत्नान्तरीयक है ( यहाँ प्रयत्नान्तरीयकत्व हेतु पक्ष और विपक्ष के एक-एक देश में रहता है । इन हेतुओं में से चार हेतु विरुद्ध हेत्वाभास हैं, किन्तु पक्ष के एक देश में रहने वाले चार हेतु असिद्ध भी हैं और विरुद्ध भी हैं। इनमें दोनों दोषों का समावेश होता है ॥२०॥
४७-अनैकान्तिक हेत्वाभास का लक्षण-सूत्रार्थ-अविनाभाव नियम को असिद्धि अथवा उसमें सन्देह होने पर साध्य के विना भी होने वाला हेतु अनैकान्तिक कहलाता है । ॥२१॥