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________________ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ ९ HWARRIraniawwwwwssssssssmrtersnewsexmarwane अकारान्त शब्दों के अन्त्यस्थ 'ऋ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'उ' की प्राप्ति होती है'; तदनुसार 'मातृ' शब्द में स्थित अन्त्य 'ऋ' के स्थान पर बैकल्पिक रूप से 'उ' की प्राप्ति भी होनी है। जैसे:मात्रा समन्वितम वन्दे माऊए समन्निनं वन्दे श्रधांत में माता के साथ (ममुच्चय रूप से) नमस्कार करता हूँ । इस 'माऊए' उदाहरण में 'मातृ' शब्द के 'ऋ' के स्थान पर सूत्र-संख्या ३.१४ के अनुमार वैकल्पिक रूप से 'उ' बादेश की प्राप्ति प्रदर्शित की गई है; अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये। प्रश्न:-सूत्र की वृसि मे ऐमा क्यों कहा गया है कि सि' 'अम्' आदि विभक्ति-बोधक प्रत्ययों के श्रागे रहने पर ही 'मातृ' शब्द में स्थित 'ऋ' के स्थान पर 'या' अथवा 'श्ररा' आदेश की प्राप्ति होती है। ___ उत्तर:-विमलित-बोधक प्रत्ययों से रहित होतो हुश्रा समास-अवस्था में गौण रूप से रहा हुना हो तो 'मातृ' शब्द में स्थित 'ऋ' स्थान पर 'या' अथवा 'परा' आदेश प्राप्ति नहीं होगी, किन्तु सुत्र संख्या १.१३५ अनुमार इस अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'इ' आदेश की प्राप्ति होगी; ऐमा सिद्धान्त प्रदर्शित करने के लिये ही सूत्र की वृत्ति में 'सि' श्रम' आदि प्रत्ययों के आगे रहने की आवश्यकता का उल्लेख करना सर्वथा उचित है । जैसे:-मातृ देवः -माइ-देवो और मात-गण-माइ-गणो; इत्यादि। इन उदाहरणों में उक विधानानुमार 'ऋ' के स्थान पर 'इ' श्रादेश की प्राप्ति प्रदर्शित की गई है। माता संस्कृत्त प्रथमान्त एकवचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप मात्रा और मारत होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-१७७ से मूल संस्कृत शब्द 'मातृ' में स्थित 'न' का लोप; ३-५६ से लोप हुए 'त्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'ऋ' के स्थान पर 'या' आदेश की प्राप्ति; ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में संस्कूनीय प्रत्यय ' सिस' की प्राकृत में प्राप्त अंग 'माया' में भी प्राप्ति एवं १-११ से प्राप्त प्रत्यय 'स' का 'हलन्त होने से लोप होकर माआ रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप (माता=) माअरा में सूत्र-संख्या १-१७७ से मूल संस्कृत शब्द 'मात' में स्थित है का लोप; ३-४६ से लोप हुए 'त्' के पश्चात शेष रहे हुए 'ऋ' के स्थान पर 'अरा' आदेश की प्राप्ति और शेष सावनिका प्रथम रूपचन होकर द्वितीय रूप मामरा भी सिद्ध हो जाता है। मातरः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप मानाज, मापात्रो, माअराउ, और मा परायो होते हैं । इनमें से प्रथम दो रूपों में सूत्र संख्या ११७. से मूल संस्कृन शमन 'मात' में स्थित 'त' का लोप; ३.४६ से लोप; हर त' के पश्चात शेष रहे 'ऋ' के स्थान पर 'पा' आदेश की प्राप्ति और ३-२७ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में श्राकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'जन' के स्थान पर प्राकृत में ऋय से '' और 'श्री' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर माआउ और माआमओ रूप सिद्ध हो जाते हैं। तृतीय और चतुर्थ प-(मातरः =) मारा और माअरात्री में सूत्र संख्या १.१७७ से मूल
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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