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________________ ६. ] * प्राकृत व्याकरण * orks.10000600mmedkarrierroretroreserterstostheatresses..... संस्कृत शब्द मातृ' में स्थित 'त' का लोप; ३-१६ से लोप हुए 'त्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'ऋ' के स्थान पर 'श्ररा' प्रादेश-की प्राप्ति और ३.२७ से प्रथम दो रूप के समान ही 'उ' और 'ओ' प्रत्ययों की अम से प्राप्ति होकर माअराउ और माअराओ रूप सिद्ध हो जाते है। मातरम संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप माअं और माअरं होते हैं। इनमें 'माया' और 'भारा' अंगों की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-३६ से 'अन्त में द्वितीया विभ.केत के एकवचन का प्रत्यय आने से मूल-अंग 'मात्रा तथा माअरा' में स्थित अन्त्य दीर्घ स्वर मा के स्थान पर हस्व वा 'अ' की प्राप्ति; 2.५ से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'श्रम' के स्थान पर शकृत में 'म्' प्रत्यय का प्राप्ति और १-२३ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर कम से शेनों रूप-माझे और माअरं सिद्ध हो जाते हैं। मातुः संस्कृत षष्ठवन्त ऋचन सा है। इस समाज मा समाए होता है। इसमें 'माश्रा' अंग की साधनिका उपरोक्त विधि अनुसार, तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-२६ से षष्ठी विभक्ति के एकवचन में श्राकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'इस = अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर माआए रूप सिद्ध हो जाता है। कुक्षे संस्कृत पचम्यन्त एकत्रवन का रूप है। इसका प्राकृत रूर कुच्छीए होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-३ से मुल संस्कृत शब्द 'कुक्षि' में स्थित 'तू' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; 2 से प्राप्त 'छ' को द्वित्व 'छछ' की प्राप्ति; २-० से प्राप्त पूर्व 'छ' के स्थान पर 'च्' का प्राप्ति और ३-२६ से पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में इकारान्त के स्त्रीलिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'असि = अस' के स्थान पर प्राकृत में अन्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्थ 'ई' की प्राप्ति करावे हुए 'ए, प्रत्यय की प्राप्ति होकर कुच्छीए रूप सिद्ध हो जाता है। नमः संस्कृत अव्यय है । इसका प्राकृत रूप नमो होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-३७ के विसर्ग के स्थान पर 'हो' श्रादेश की प्राप्ति; नत्पश्चात् 'डो' में 'ड' इसझक होने से मूल अध्यय 'नम' में स्थित अन्त्य 'अ' की इसंज्ञा होकर लोप एवं तत्पश्चात् प्राप्त हलन्त अंग 'नम्' में पूर्वोक्त 'प्रो' आदेश की प्राप्ति संधि-संयोजना होकर प्राकृतीय श्रव्यय रूप नमो सिद्ध हो जाता है। मातृभ्यः संस्कृत चतुर्थ्यन्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप माअराण होता है। इसमें 'माबरा' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् प्राप्तांग ' मारा' में सूत्र संख्या ३-१३१ से चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का योग-दान एवं तदनुसार ३-६ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'श्राम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ग' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मामराण कप सिद्ध हो जाता है। मातृभ्यः संस्कृत चतुर्यन्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप माईग होता है। इसमें ..
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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