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________________ [ ५८० ] पर अपभ्रंश-भाषा में 'इएन' आदेश प्राप्त प्रत्यय का प्रयोग किया गया है और ऐश करते हुए 'कारएवढं और मरिए पदों का निर्माण किया गया है ॥ १ ॥ * प्राकृत व्याकरण $�$6400660060665600660*60400 $444846046644546**E संस्कृत:- देशोच्चाटन, शिखि कथनं, घन- कुट्टनं यद् लोके ॥ सोढव्यं भवति ||२|| मञ्जिष्ठया अतिरक्तया, सर्व हिन्दी:- मंजिष्ठा नाम वाला एक पौधा होता है, जोकि अत्यधिक लाल वर्ण वाला होता है और इस लालिमा के कारण से हो वह जन साधारण द्वारा आकर्षित किया जाकर सर्व प्रथम तो जड़मूल से हो उखाड़ा जाता है और सत्चात् अग्नि पर #वाथ के रूप में खूब ही पकाया जाता है; एवं इसके बाद 'रंग-प्राप्ति के लिये' लाई के भारा घन से छूटा जाता है: यो पनी रक्त वर्णता के कारण से उसे सब-कुछ सहन करने योग्य स्थिति वाला बनना पड़ता है। इस गाथा में संस्कृत-पद 'सोढव्य' के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'सव्य' पद का प्रयोग करते हुए यह समझाया गया है कि 'तव्य' प्रत्यय के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में द्वितीय प्रत्यय 'ए' को आदेश- प्राप्ति हुई है ॥२॥ संस्कृतः - स्वपित्तव्यं परं वारितं पुष्पवतीभिः समानम् ॥ जागरितव्यं पुनः कः धरति ? यदि स वेदः प्रमाणम् ||३|| हिन्दो: - ऋतुमती स्त्रियों के साथ 'सोना चाहिये' इसका निषेध किया गया है। तो फिर ऐसा कौन है ? जिसकी जागता हुआ रहना चाहिये । इसके लिये वेद ही प्रमाण-स्वरूप हैं। इन गाथा में 'पतयं और जागरितव्य' पदों में आये हुए 'तव्यं' प्रत्यय के स्थान पर अपभ्रंश माषा में तृतीय प्रत्यय 'एवर' का प्रयोग करते हुए 'मोएबा और जमेवा' रूपों का निर्माण किया गया है ॥३॥ यो संस्कृत - प्रत्य 'सव्य के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में उक्त प्रकार से तीन प्रत्ययों की श्रादेशप्राप्ति की स्थिति को समझ लेना चाहिये। 'चाहिये' अर्थक इस कन्त का संस्कृत-व्याकरण में विधिकृदन्त' के नाम उल्लेख किया जाता है। अग्रेजी में इसको ( Potential Passive Participles ) कहते हैं ।। ४-४३८ ।। क्ल इ-इउ - इवि - अत्रयः ॥ ४-४३६ ॥ अपभ्रंशे वा प्रत्ययस्य इ उ इवि श्रवि इत्येते चत्वार आदेशा भवन्ति ॥ इ । हिडा जह वेरि, घणा तो किं श्रमि चढाहुं ॥ अम्हाहिं वे हत्था जह पुणु मारि मराहुं ॥ १ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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