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________________ [ ५७२ ] प्राकृत व्याकरण श्र oroor.amroomorrooteoroorrars+o+0000000000000rsorrowroorrearroriser (१) संस्कृता-विग्हानल-ज्याला-करालितः पथिकः पथि यद् दृष्टः । तद् मिलित्वा सर्वेः पथिकः स एव कृतः अग्निष्ठः १ , हिन्दो:-जम किसी एक यात्री को मार्ग में विरह रूपी अग्नि की ज्वालाओं से प्रज्वलित होता हुधा अन्य यात्रियों ने देखा तो सभी यात्रियों ने मिलकर उसको भूम पस्था को प्राप्त हुआ जान कर के ) अग्नि के समर्पण कर दिया। (२) मम कान्तस्य द्वौ दाषौ - गहु फन्तही बे दोसड़ा = मेरे पियतम के हो दोष (त्रुटियाँ हैं। इस गाथा-चरण में 'दासडा' पद में 'डड = अह' इस स्वार्थिक प्रत्यय को प्रामि हुई है। (३) एका कुटी पञ्चभिः रुद्धा - एक कुडुल्ली परचेहिं सद्धी - एक ( छोटी सो ) झोंपड़ी पाँच से रुध । रोको ) गई है। इस माथा-पाद में कुडुल्ली पद में 'डुल्त = उल्न' ऐसे स्त्रार्थिक प्रत्यय की संयोजना हुई है ।। ४-४२६ ।। योग जाश्चैषाम् ॥ ४-४३० ॥ अपभ्रंशे अडडडुलानां योगभेदेभ्यो ये जायन्ते उडअ इत्यादयः प्रत्ययाः ते पि स्वार्थे प्रायो भवन्ति ॥ डडन । फोडेन्ति जे हिअडउं अप्पाउं । अत्र 'किसलय' (१-२६६ ) इत्यादिना. यलुक् ।। डुलभ । चूडलाउ चुनी होइ सई ॥ डल्लडड । सामि-पसाउ सलज्जु पिउ सीमा-संघिहिं बासु ॥ पेक्खिवि बाहु-बलुल्लडा धण मेल्लइ नीसासु ॥१॥ अत्राभि । "स्यादौ दीर्घ -हस्यों" (४-४३०) इति दीर्घः । एवं बाहुबलुम्लङउ । अत्र त्रयाणां योगः ॥ अर्थ:-सूत्र-सख्या ४-४२६ में 'श्र, डड, डुल्ल' ऐसे तीन स्वार्थिक प्रत्यय कहे गये हैं। तदनुसार अपभ्रश भाषा में संज्ञाओं में कमो कभी इन प्रस्थयों में से काई भो दो अथवा कभी कभी तीनों भी एक साथ संज्ञाओं में जुड़े हुए पाये जाते हैं । यों किन्हीं दो के अथवा तीनों के एक साथ जुड़ने पर भी संज्ञाओं के अर्थ में कोई भा अन्तर नहीं पड़ता है । इस प्रकार से तीनों स्वार्थिक प्रत्ययों के योग से, समस्त रूप से तथा व्यस्त रूप से विचार करने पर कुल स्वार्थिक पत्ययों की संख्या सात हो जाती है; जोकि क्रम से इस प्रकार लिखे जा सकते हैं:--- (१) अ, (२) दृष्ट, (३) डुल्ल, (४) उखम, (५) सुल्ल, (६) हुल्लडड, (७) डुल्लउडा । इनके उदाहरण इस प्रकार से है:
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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