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________________ *प्राकृत व्याकरण र Imroorketeroneestoweredroomdomasveereaderstoorkeesameersion ईतः से श्चा वा ॥ ३-२८॥ स्त्रियां वर्तमानादीकारान्तात् सेर्जस्-शसोश्वस्थाने श्राकारो वा भवति ॥ एसा इसन्तीश्रा | गोरीमा चिट्ठन्ति पेच्छ वा । पक्षे । हसन्ती । गोरीयो । अर्थ:-प्राकृत-भाषा में दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में संस्कृतोय प्रथमा विभक्ति के एक वधन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'या' अादेश की प्राप्ति होती है । जैसे:एषा इसन्तो-एसा हसन्तीआ अर्थात यह हमती हुई । वैकल्पिक पक्ष होने से 'हसन्ती' (अर्थात हमनी हुई) रूप भी प्रथमा विभक्ति के एक वचन में बनता है । इसी प्रकार से इन्हीं ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में संस्कृतीय प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर और द्वितीयो विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'शस्' के स्थान पर भी वैकल्पिक रूप से 'श्रा' आदेश की प्राप्ति हुश्रा करती हैं । जैसे:--'जस' का अाहरणः गौर्यः तिष्टान्त गोरीश्रा चिट्ठन्ति; वैकल्पिक पक्ष में:-गोरीश्रो चिन्ति अर्थात् सुन्दर स्त्रियाँ विराजमान हैं । 'शस्' का उदाहरण:-गौरीः पश्य-गोरीश्रा पेरछ; वैकल्पिक पक्ष में:-गोरीयो पेच्छ अर्थात सुन्दर स्त्रियों को देखो । इन उदाहरणों में यह प्रदर्शित किया गया है किः'सि', 'जस' और 'शस्' के स्थान पर बैकल्पिक रूप से ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में 'श्रा' श्रादेश हुश्रा करता है। एसा रूप की सिद्धि सूत्र--संख्या १-3 में की गई है। हसन्ती संस्कृत प्रथमान्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप हसन्तीश्रा और हमन्ती होते हैं। इनमें सुत्र-संख्या ४-२२ से मूल प्राकृत हलन्त धातु 'हम' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति;३-१८१ से वर्तमान कृदन्त रूप के अर्थ में प्राप्त धातु 'हस' में 'न्त' प्रत्यय की प्राप्ति; ३-३१ से प्राप्त रूप 'इसन्त' में स्त्रीलिंगार्थक प्रत्यय 'डी' की प्राप्ति; तदनुसार प्राप्त प्रत्यय 'डी' में स्थित इ' इत्संज्ञक होने से शेष प्रत्यय 'ई' को प्राप्ति के पूर्व 'इसन्त' रूप में से अन्त्य हस्व स्वर 'अ' की इत्संज्ञा होकर 'अ' का लोप एवं प्राप्त हलन्त 'हसन्त' में उक्त स्त्रोलिंग वाचक प्रत्यय 'ई' की संयोजना होने से 'हसन्ती' रूप की पाप्ति; तत्पश्चात् प्राप्त रूप 'हसन्ती' में सूत्र संख्या ३-२८ से संस्कृनीय प्रथमो विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर 'या' आदेश रूप प्रत्यय को प्राप्ति होकर प्रथम रूप हसन्तीमा सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(हसन्ती) हसन्ती में सूत्र मख्या ३-१६ से प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर अन्त्य स्वर को दीर्घता की प्राप्ति रूप स्थिति यथावत् रहकर द्वितीय रूप हसन्ती सिद्ध हो जाता है। गौर्यः-संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप गोरीश्रा और गोरोश्रो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-४ से मूल शब्द 'गौरी' में स्थित 'ओ' के स्थान पर 'श्री' की प्राप्ति;
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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