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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित 106609486696660950666666096 [ ५४१ ] 000056 हिन्दी:- जब मानव जीवों के सामने कठोर अथवा विपरीत कार्य स्थिति उत्पन्न हो जाती है; तब साधारण आदमी की तो बात ही क्या है ? सज्जन पुरुष भी बाधा देने लग जाता है। इस गाथा में 'यावत्' के स्थान पर 'जामहिं' लिखा है और 'तावत्' की जगह पर 'तामहि' बतलाया है । यो क्रम से 'नाम, जाउं धीर जामहिं' तथा 'ताम, ताडं और तामहिं अव्यय पदों की स्थिति समझाई है ।। ४-४०६ ।। वा यत्तदोतोंडे' वड: अपभ्रंशे यद् तद् इत्येतयोरत्वन्तयो यवत्तावतो वकारादेरवयवस्य डित् एवड इत्यादेशो वा भवति ॥ जेडु अन्तरू रावण - रामहं, तेबहु अन्तरू पट्टण - गाई || पदे । जेतुलो । तेतुलो ॥ · अर्थः- सम्कृत भाषा में उपलब्ध यद् और 'तद्' सर्वनामों में जब परिमाणवाचक प्रत्यय 'अतु=श्रत्' की प्राप्ति होकर 'जितना' अर्थ में 'यावत्' शब्द बनता है तथा 'इतना' अर्थ में 'तावत्' शब्द बनता है तब इन 'यात्रत्' और 'तावत्' शब्दों में रहे हुए अन्त्य अवयत्र 'व' के स्थान पर अप भ्रंश भाषा में 'डिल' पूर्वक 'एवढ' अवयव रूप की विकल्प से श्रादेश प्राप्ति होती है। 'डिल पूर्वक' ऐसा कहने का ताल यह है कि 'यावत् और तावत्' शब्दों में 'वत्' अत्रयत्र के लोप हो जाने के पश्चात् शेष रहे हुए शब्द भाग 'या' और 'ता' में स्थित अन्त्य स्वर 'आ' का भी लोग होकर इन हलन्त भाग 'य तथा त' में आदेश प्राप्त 'एवड' भाग की संधि होकर क्रम से इनका रूप 'जेवड और तेत्र' बन जाता है । जैसेः-- यात्रत् = जेवड- जितना । तावत्-तेवड उतना || वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में सूत्र संख्या ४४३५ से 'यावत् और तावत्' में खेल = एतुल प्रत्यय की प्राप्ति होकर इसी अर्थ में द्वितीय रूप 'जेल और तल' भो सिद्ध हो जाते हैं। जैसे: - यावत् जेतुलो जितना और तावत्-तेतली = उतना ॥ वृत्ति में दिया गया उदाहरण इस प्रकार में हैं:- यावद् अन्तरं रावण रामयोः नावद् श्रन्तरं पट्टण प्रामया: = जेवडु अन्तरू रावण-रामह, तेबहु अन्तक पट्टा- गामहं जितना अन्तर रावण और राम में है उतना 'अन्तर माम और नगर में है ।। ४-४०७ ।। ।। ४-४०७ ।। ב' वेद - किमोर्यादेः ४ ।। ४-४०८ ॥ अपभ्रंशे इदम् किम् इत्येतयोरत्वन्तयोरियत् कियतो यकारादेरवयवस्य डित् एवड इत्यादेशो वा भवति || एवड्डु अन्तरू । केवड्डु अन्तरू ॥ पक्षे । एत्तुलो । केतुलो !!
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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