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________________ w [५४० ] * प्राकृत व्याकरण * w eeeeeeeve bee8899 $$$$$$$$$$$Ạ+++++++++++++++ जाम न निवडइ कुम्भ-यांडे -सीह-चबेड-चडक्क ।। ताम समत्तहं मयगलहं पह-पह वज्जइ हक्क ।। १ ॥ तिलहं तिलतणु ताउं पर जाउं न नेह गलन्ति ।। नेहि पणवह तेज्जि तिल तिल फिट्ट वि खल होन्ति ॥ २ ॥ जामहि विसमी कज्ज-गई जीवह मज्झे एइ ।। तामहि अच्छउ इयरू जणु सु-अणुवि अन्तरू. देई ।। ३ ।। अर्थः-संस्कृत भाषा में उपलब्ध 'यावत और तावत' प्रत्ययों में अवस्थित अन्त्य अवयव 'वत्' के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'म, ई और महि' ऐसे तोन तीन प्रादेश कम में होते हैं। जैसे:यावत-जाम अथवा जाचं अथवा जामहि = जब तक, जितना । तावत - ताम अथवा ताजं अथवा तामहिं - तब तक, सतना ।। सूत्र-संख्या ४-३६७ से 'जाम और ताप' में अवस्थित 'मकार' के स्थान पर अनुनासिक सहित 'वकार' अर्थात् '' को आदेश प्राप्ति भी वैकल्पिक रूप से होने से 'जा और तावं' रूपों की प्राप्ति भी होगी । उक्त अध्यय रूपों की स्थिति को स्पष्ट करने के लिये जो गाथाऐं दी गई है। उनका मनुवाद क्रम से इस प्रकार है:संस्कृतः-यावत् न निपतति कुम्मतटे, सिंह-चपेटो-चटात्कारः॥ तावत् समस्ताना मद कलानां (गजाना) पदे पदे वाद्यते ढका ॥१॥ हिन्दी:-जन तक सिंह के फजे की चपेटों का चदात्कार याने थाप (हाथियों के) गण्ड-स्थल पर अर्थात् गर्दन-तट पर नहीं पड़ती है, तभी तक मदोन्मत्त समी हाथियों के डग हग पर (पद पद पर ऐसी ध्वनि उठती है कि मानों) इमरू बाजा बज रहा हो। इस गाथा में 'यावत्' के स्थान पर 'जाम' का प्रयोग किया गया है और सावत' के स्थान पर 'ताम' अध्यय पदों को स्थान दिया गया है ॥ १।। संस्कृत:-तिलानां तिलत्वं तावत् परं, यावत् न स्नेहा: गलन्ति ॥ स्नेहे प्रनष्ट ते एव तिला तिलाः भ्रष्ट्वा खलाः भवन्ति ॥ २ ॥ हिन्दी:-तिलों का तिलपना तभी तक है, जब तक कि तेल नहीं निकलता है। तेल के निकल जाने पर वही तिल तिलपने से भ्रष्ट होकर ( पतित होकर खल रूप कहलाने लग जाते हैं । इस गाथा में यावत् और तावत्' क स्थान पर क्रम से 'जाउं और ताउ' रू.पो का प्रयोग समझाया गया है ।। २ ।। संस्कृतः-यावद् विषमा कार्यगतिः, जोवानां मध्ये आयाति ।। तावद् प्रास्तामितरः जनः मुजनोऽप्यन्तरं ददाति ॥ ३ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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