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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित #
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हिन्दी:- यदि विश्व-निर्माता ब्रह्मा इस विश्व में यहाँ पर, वहाँ पर अथवा कहीं पर भी ( निर्माणकला का । शिक्षा को पढ़ करके अध्ययन करके-( पुरुषों का अथवा स्त्रियों का ) निर्माण करता; तमी उस सुन्दर स्त्री के समान अन्य (पुरुष का अथवा श्री ) का निर्माण करने में समर्थ होता। अर्थात वह ( नायिका) सुन्दरता में बेजोड़ है।
माया पत्र के स्थान ५६ जेथु' का प्रयोग किया गया है और 'तत्र' के स्थान पर 'तेथु' श्रश्यय रूप लिखा गया है। शेष रूपों के क्रम से उदाहरण यों हैं:
(१) यत्र स्थितः = जत्तु टिदी जहाँ पर ठहरा हुआ है।
(1) तत्र स्थितः = तत्तु ठिो-वहाँ पर ठहरा हुआ है। यों कम से पादेश-प्राप्त चारों अध्ययरूषों की स्थिति को समझ लेना चाहिये ।। ५-५०४॥
एत्थु कुत्रात्रे ॥ ४-४०५॥ अपभ्रंशे कुत्र अत्र इत्येतयोस्त्रशब्दस्य डित् एत्थु एत्यादेशो भवति ॥ केत्थु वि लेप्पिणु सिक्सु ॥ जेत्यु वि तेत्थु चि एत्थु जगि ।।
अर्थ:--संस्कृत-भाषा में उपलब्ध 'कुत्र और अत्र अध्ययों में अवस्थित अनस्य अक्षर 'त्र' के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'हित' पूर्वक 'एन्थु' अवयव की प्रादेश प्राप्ति होती है । 'डित' पूर्वक कहने का अर्थ यह है कि 'कुत्र और अत्र' अध्यय शब्दों के अन्त्य अक्षर 'त्र' के लोप हो जाने के पश्चात् शेष रहे हुए शब्दांश 'कु और अ' में अवस्थित धन्त्य स्वर 'अ' और 'अ' का भी लोप होकर तत्पश्चात् आदेश-रूप से प्राप्त होने वाले अवयव रूप 'एत्थु' को उन शेषांश अक्षरों के साथ संधि हो जाती है। जैसे:-कुत्र-केत्थु-कहाँ पर-कहीं पर ? और अत्र-पत्थु-यहाँ पर अथवा इसमें | अन्य उदाहरण इप्स प्रकार :
(१) कुत्रापि लात्वा शिक्षाम-केयु वि लेफ्णुि सिक्खु - कहीं पर भी शिक्षा को ग्रहण करके। यहाँ पर 'कुत्र' के स्थान पर 'केहथु' का प्रयोग है।
() यत्रापि तत्रापि अत्र जगतिन्जेत्थु वि सेत्थु वि पत्थु जगि - जहाँ पर-वहाँ पर यहाँ पर इस जगत् में || इस चरण में 'अन्न' के स्थान पर एत्थु' अव्यय-रूप का प्रयोग प्रदर्शित है ॥ ४.४.५ ।।
यावत्तावतोर्वादेर्मउमहि ॥४-४०६ ॥ अपभ्रशे यावचावदित्यव्यययो कारादेवयवस्य म 5 महिं इत्येते त्रय आदेशा भवन्ति ।