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________________ [ ५३६ ] हिन्दी:- ओह ! ! सूचना अाश्रयथ ) गौरी (गायिका विशेष ) मल की शोमा से हार खाया हुआ यह चन्द्रमा बादलों में छिप गया है। दूसरे से हारा हुआ अन्य कोई भी हो, वह रिता पूर्वक ( सन्मान पूर्वक ) कैसे परिभ्रमण कर सकता है ? इम गाथा में कथं' के स्थान पर 'कि' आदेश प्राप्त रूप का प्रयोग किया गया है ।। २ ॥ * प्राकृत व्याकरण संस्कृत: --- बिम्बाधरे तन्त्र्याः रदन - त्रणः कथं स्थितः श्री आनंद ॥ निरूपम र प्रियेश पीत्वेव शेषस्य दत्ता मुद्रा ॥ ३ ॥ हिन्दी:- हे श्री आनन्द ! सुन्दर शरीर वाली ( पतले शरार वालों ) नायिका के लाल लाल होठों पर दांतों द्वारा अंकित चिह्न किस प्रकार शोभा को धारण कर रहा है ? मानों प्रियतम पति देव से द्वितोय अमृत रस का पान किया जाकर के होठों में ) अवशिष्ट रस के लिये सील-मोहर लगा दी गई है; (जिससे कि इस अमृत रस का अन्य कोई भो पान नहीं कर सके ) इस गाया में कथ' य स्थान पर 'कि' आदेश श्रप्ति रूप का प्रयोग किया गया है || ३ ॥ संस्कृत::-भग सखि ! निभृतकं तथा मयि यदि प्रियः दृष्टः सदोषः ॥ यथा न जानाति मम मनः पक्षापतितं तस्य ॥ ४ ॥ हिन्दी:- हे सखि ! यदि मेरे विषय में मेरा प्रियतम तुझ से सदोष देखा गया है तो तू निस्संकोच होकर (प्राइवेट रूप में ) मुझे कहड़े। मुझे इस तरीके से कह कि जिससे वह यह नहीं जाम सके कि मेरा मन उसके प्रति अब पक्षपात पूर्ण हो गया है । इम गाथा में 'तथा' के स्थान पर 'तेखेँ' लिखा गया है और 'यथा' के स्थान पर 'जेव' का प्रयोग किया गया है ॥ ४ ॥ संस्कृत: - यथा यथा वक्रिमाां लोचनयोः ॥ अपभ्रंशः - जिवँ जिवँ वहिम लोमराई | हिन्दी:- जैसे जैसे दोनों जेनों की वकता को । यहाँ पर 'यथा यथा' के स्थान पर 'जिवें, जिवँ' का प्रयोग किया गया है। संस्कृतः तथा तथा मन्मथः निजक- शरान् ॥ अपभ्रंशः - तिवँ तिबँ वम्महु निमय- सर || हिन्दी: - वैसे वैसे कामदेव अपने बाणों को । इस चरण में 'तथा तथा' की जगह पर 'तियँ, ति' ऐसे आदेश प्राप्त रूप लिखे गये हैं । संस्कृत: :---मया ज्ञातं प्रिय ! विरहितानां कापि धरा भवति विकाले || केप ( = परं) मृगाङ्कोष तथा तपति यथा दिवकरः क्षयकाले ॥ ५ ॥ ८.
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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