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________________ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [५३७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 हिन्दी:-हे प्रियतम ! मुझम ऐमा जाना गया था कि प्रियतम के वियोग से दुःखित व्यक्तियों के लिये संध्या-काल में शायद कुछ भी सान्तना का श्राधार पास होना होगा; किन्तु ऐपा नहीं है। 'देखा चन्द्रमा भी संध्याकाज में सभी प्रकार से उष्णता प्रदान करने वाला प्रतीत हो रहा है; जैसाकि सूर्य उभानामय ताप प्रदान करता रहता है। इस गाथा में 'तथा' अव्यय के स्थान पर तिह' रूप की श्रादेश प्राति हुई है और 'यथा' को जगह पर 'जिह' आदेश प्रात अव्यय रूप लिखा गया है ।। ५ ।। इसी प्रकार से 'कथं, यथा और तथा' अव्यय पदों के स्थान पर आदेश-भाप्ति के रूप में प्राप्त होने वाले अन्य रूपों के उदाहरणों की कल्पना स्वयमेव कर लेनी चाहिये, ऐमी प्रन्थकार की सूचना है। यादृक्तादृक्कीगीदृा दादे डेहः ॥ ४-४०२ ॥ अपभ्रंशे याहगादीनां दादेवयवस्य डित् एह इत्यादेशो भवति ॥ __ मई भणिअउ बलिराय ! तुई केहउ मग्गय एहु॥ जेहु तेहु न वि होइ, वह ! सई नारायणु एहु ॥१॥ अर्थ:-संस्कृत भाषा में उपलब्ध 'याक. तारक, कोहक और ईडक' शब्दों में अवस्थित अन्त्य भाग 'हक्क' के स्थान पर अपभ्रश भाषा में हिन्-पूर्वक' 'पह' अंश-रूप की श्रादेश-प्राप्ति होती है। 'डित' पूर्वक कहने का तात्पर्य यह है कि 'रक्' भाग के लोप हो जाने के पश्चात् शेष रहे हुप. 'या, ता, की और ई' के अन्त्य स्वर 'बा, और ई' का भो लोप हो जाता है और तत पश्चात ही 'एइ' अंश रूप की आदेश प्राप्ति होकर एवं संधि अवस्था प्राप्त होकर कम से यो आदेश प्राम रूपों की प्राप्ति हो जाती है। जैसे:-यारक-जेह = जिसके ममान; तारक = तेह = उसके ममान; कोडक्= केह = किस के समान और ईटक- एह - इसके ममान | आदेश प्राम रूप विशेषण हाने से विशेष्य के समान ही विभकियों में मां इनके विभिन्न रूप बन जाते हैं। गाथा का भाषान्तर यों है: संस्कृतः-मया भणितः बलिराज ! त्वं कोटग् मार्गणः एपः ॥ याकू-तादृक् नापि भवति मूर्ख ! स्वयं नारायणः ईटक् ॥ १॥ हिन्दोः-हे राजा बलि ! मैंने तुम्हें कहा था कि यह मांगने वाला किस प्रकार का भिखारी है ? हे मूर्ख ! यह ऐसा पैसा भिस्वारी नहीं हो सकता है। किन्तु इस प्रकार 'भिखारी' के रूप में स्वयं भगवान् नारायण-विष्णु है ॥ १॥ यों इस गाथा में 'यादृङ्, तारक, कोग और ईह' के स्थान पर कम से 'जेहु, तेहु, केइउ और एहु' रूपों का प्रयोग किया गया है । ४-४०२ ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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