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________________ *प्राकृत व्याकरण rrrrrrrr.noop000000000000000000000wokterestion000000000moremorror.in वासा-रत्ति-पासुअहं विसमा संकडु एहु ॥ ४ ॥ अम्मि ! पोहर बज्जमा निच्चु जे संमुह थन्ति ।। महु कन्तहो समरङ्गणइ गय-घड भज्जिउ जन्ति ॥५॥ पुत्ते जाएं कवणु गुण, अवगुणु कवणु मुएण ॥ जा बप्पीकी मुंहडी चम्पिजइ अवरेण ॥ ६ ॥ तं तेत्तिउ जलु सायरहो सो तेबडु वित्थारु ॥ तिसहे निवारणु पलवि नवि पर धुइ असार ।।७।। अर्थ:--- संस्कृत भाषा में 'छोलना-छिलके उतारना' अर्थक उपलब्ध धातु 'तक्ष' के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'छोल्ल' ऐसे धातु रूप की श्रादेश प्राप्ति होती है। यों अन्य अनेक धातु अपभ्र श भाषा में आदेश रूप से प्राम होती हुई देखी जाती हैं। उनकी आदेश प्राप्ति का विधान स्वयमेव समझ लेना चाहिये । वृत्ति में श्राई हुई गाथाओं का भाषान्तर कम से इस प्रकार है: संस्कृता-~यथा तथा तीक्ष्णान् करान् लात्वा यदि शशी अतक्षिष्यत ॥ तदा जगति गौर्या मुख-कमलेन सदृशता कामपि अलप्स्यत ॥१॥ हिन्दी:---(बिना विचार किये) जैसी तैसो तीक्ष्ण-कठोर किरणों को लेकर के चन्द्रमा (कमलमुखियों के मुख की शोभा को) छोलता रहेगा तो इस संसार में (अमुक नायिका विशेष के) गौरी के मात्र कमल की समानता को कहीं पर भी (किसी के साथ भी) नहीं प्राप्त कर सकेगा ॥१॥ सस्कृतः-कणं चूर्णी-भवति स्वयं मुग्धे । कपोले निहितम् ।। श्वासानल ज्वाला-संतप्तं बाष्प-जल-संसिक्तम् ॥२॥ हिन्दी:-हे (सुन्दर गालों वाली) मुग्ध-नायिका ! श्वास-निश्वास लेने से उत्पन्न गर्मी अथवा अग्नि की ज्वालाओं से (माल से) गरम हुआ और बाप अर्थात भाप के (अथवा नेत्रों के आँसु रूप) जल से भीगा हुश्रा एवम् गाल पर रखा हुश्रा (तुम्हारा यह) कंकड़-चूड़ी चूर्ण चूर्ण हो जायगी-टूट जायगी । गरम होकर भागा हुआ होने से अपने आप ही तड़क कर कंकण टुकड़े टुकड़े हो जायगा। इस गाथा में 'तापय्' धातु के स्थान पर 'झलक' धातु का प्रयोग किया गया है। जो कि देशज है ॥६॥ संस्कृतः-अनुगम्य द्वे पदे प्रेम निवर्तते यावत ॥ सर्वाशन-रिपु-संभवस्य करोः परिवृत्ताः तावत् ॥३॥ .
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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