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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [५१8 ] बहुत्वे हुः ॥ ४-३८४ ॥ त्यादीनां मध्यमत्रयस्य संबन्धि बहुध्धर्थेषु वर्तमानं यद्वचनं तस्यापभ्रंशे हु इत्यादेशो वा भवति ॥ बलि अन्भत्थणि महु-महणु लहुई हुआ सोइ ।। जइ इच्छहु बहुत्तणउं देहु म मग्गहु कोइ ॥१॥ पक्षे । इच्छह । इत्यादि । अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष के बहुवचन के अर्थ में प्राकृत-भाषा में प्रामभ्य प्रत्ययों के अतिरिक्त एक प्रत्यय 'हु की विकल्प से और विशेष रूप से आदेश प्राप्ति होती है। प्राकृत-भाषा में इसी अर्थ में प्राप्रव्य प्रत्यय 'इत्था' और 'ह' प्रत्ययों की प्राप्ति अपभ्रंश भाषा में भी नियमानुसार होती है। जैसे:-इष्टछथइच्छड = तुम इच्छा करते हो । वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षासर में 'इच्छिमा और इचाह' बों को शालिक होगी : सभी - देव - तुम बेते हो। पक्षान्तर में 'देह' और 'देइत्या' रूप भी बनते हैं। पूरी गाथा का अनुवाद यों हैं।संस्कृतः–बले. अभ्यर्थने मधुमथनों लघुकीभूतः सोऽपि ॥ यदि इच्छथ महत्त्व (बत्तण) दन, मा मार्गयत कमपि ॥१॥ हिन्दी:-मधु नामक राक्षस को मथने वाले भगवान विष्णु को भी बति राजा से भीख मांगने की दशा में छोटा अर्थात् 'वामन' होना पका था, इसलिये यदि तुम महानता चाहते हो तो देभो; परन्तु किसी से भी मांगो मत ॥ १॥ ४-३८४ ।। अन्त्य-त्रयस्याद्यस्य उं॥४-३८५॥ त्यादीनामन्त्यत्रयस्य यदाव्यं धनं तस्यापभ्रंशे उं इत्यादेशों का भवति ॥ विहि विणडउ पीडन्तु गह मं धणि करहि बिसाउ । संपर कडउं वेस जिव छुड अग्षइ वरसाउ ॥१॥ बलि किज्जउं सुश्रणस्सु ।। पक्षे ॥ कडामि इत्यादि । अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में वर्तमानकाल के अर्थ में 'मैं' वाचक उत्तम पुरुष के एकवचन में प्राकृत भाषा में प्राप्तव्य प्रत्यय के अतिरिक्त एक प्रस्थय 'च' की भादेश प्राप्ति विकल्प रूप से और विशेष रूप से होती है । कल्पिक पक्ष होने से पशान्तर में 'मि' प्रत्यय की मी प्राप्ति होगी । जैसे:- मि-कइडर्ड
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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