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________________ [ ५२० ] मैं खींचता हूँ ! पक्षान्तर में 'कडा' रूप भी होगा । बलिं करोमि सुजनस्य बक्षि किज्जलं सुमणस्सु = सज्जन पुरुष के लिये मैं (अपना) बलिदान करता हूं। पक्षान्तर में 'किन' के स्थान पर 'किजामि' रूप भी होगा। गाथा का भाषान्तर इस प्रकार है: * प्राकृत व्याकरण * भवति ॥ संस्कृतः - विधि विनाटयतु ग्रहाः पीडयन्तु मा धन्ये ! कुरू विषादम् । संपर्क कर्षामि वेषमिव, यदि अति (स्यात्) व्यवसायः || १ || हिन्दी:- मेरा भाग्य भले ही प्रतिकूल होवे, और यह भी भले ही मुझे पीड़ा प्रदान करें; परन्तु हे मुग्धे ! हे धन्य ! तू खेद मत कर। जैसे मैं अपने कपड़ों को - ( ड्रेस को वेष को ) आसानी से पहिन लेता हूँ, वैसे ही धन-संपत्ति को भी आसानी से आकर्षित कर सकता हूँ- खींच सकता हूँ। यदि मेरा व्यवसाय अच्छा है – यदि मेरा धंधा फलप्रद है तो सब कुछ शीघ्र ही अच्छा हो हांगा ॥ ४-३८५ ।। बहुत्वे हु* ॥ ४-३८६ ॥ यादीनामन्त्यस्य संबन्धि बहुष्वर्थेषु वर्तमानं यदुवचनं तस्य हुं इत्यादेशो वा खग्ग- बिसाहिउ जर्हि लड्छु' पिय तर्हि देसहिँ जाहु ॥ र - दृष्भिक्खें भग्गाई विणु जुज्झें न बलाहुं ॥१. पक्षे । लहि । इत्यादि ॥ अर्थ :- अपभ्रंश भाषा में वर्तमानकाल के अर्थ में 'हम' वाचक उत्तम पुरुष के बहुवचनार्थ में प्राकृत भाषा में उपलब्ध प्रत्ययों के अतिरिक्त एक प्रत्यय 'हुं' की आवेश प्राप्ति विकल्प से और विशेष रूप से होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'मो, मु, म' प्रत्ययों की भी प्राप्ति होगी। जैसे:--- (९) लभामहे लहुँ हम प्राप्त करते हैं । पचान्तर में 'लहमो, लहमु, लहम, सहिस' इत्यादि रूपों की प्राप्ति होगी । (२) ग्राम-जाई हम जाते हैं; ज्ञान्तर में जामो = हम जाते हैं । (३) बलामहेषलाहुं = हम रह सकते हैं | पक्षान्तर में बलामी - हम रह सकते हैं। पूरी गाथा का अनुवाद यों है: संस्कृत: -- खड्ग विसाधितं यत्र लभामहे, तत्र देशे यामः ॥ र-दुर्भिक्षेण भग्नाः युद्धेन न चलामहे ॥ १ ॥ विना हिन्दी:- हम उस देश को जायेंगे अथवा जाते हैं; जहां पर कि तलवार से सिद्ध होने वाले कार्य को प्राप्त कर सकते हों । युद्ध के दुर्भिक्ष से अर्थात् युद्ध के अभाव से निराश हुए हम बिना युद्ध के (सुम पूर्वक) नहीं रह सकते हैं ।। ४-३६६ ॥ I
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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