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________________ 4000000 * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित 00200 0004000000000 " संस्कृतः त्वां मुञ्चन्त्याः मम मरणं, मां मुञ्चतस्तत्र सारस: (यथा) यस्य दूरे (वेग्गला), स कृतान्तस्य साध्यः || ४ || हिन्दी:- यदि मैं तुम को छोड़ दूं तो मेरी मृत्यु हो जायगी और यदि तुम मुझको छोड़ देते ही तो तुम मर जाओगे । ( दोनों ही प्रियतम और प्रियलमा परस्पर में एक दूसरे के वियोग में मृत्यु प्राप्त कर लेंगे — जैसेकि - ) नर सारस और मादा सारस यदि एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, तो वे यमराज के अधिकार में चले जाते हैं - अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं || ४ || [ ५६ ] वृति में कहा गया है कि जैसे 'पई' का प्रयोग गाथाओं में किया गया है; जैसे ही 'ताई' का प्रयोग भी स्वयमेव समझ लेना चाहिये ||४॥ भिसा तुम्हेहिं ॥ ४-३७१ ॥ अपभ्रंशे युष्मदो भिसा सह तुम्हेंहिं इत्यादेशो भवति || तुम्हहिं अम्देहिं जं कि अजं दिट्ठउं बहुश्रजखेण ॥ तं तेवहुउं समर - भरू निज्जिउ एक-खणेण ॥ अर्थः- अपनश भाषा में 'युष्मद्' सर्वनाम शब्द के साथ में तृतीया विभक्ति के बहुवचन वाले प्रत्यय 'मिस्' का संयोग होने पर मूल शब्द 'युष्मद्' और प्रत्यय 'भिस' दोनों के स्थान पर 'तुम्हेंहिं' ऐसे एक पद की ही नित्यमेव आदेश प्राप्ति होती है । जैसे: युष्माभिः = तुम्हेहि = तुम (सब) से अथवा आप (सब) से गाथा का अनुवाद यों है: युष्माभिः अस्माभिः यत् कृतं दृष्टं बहुक- जनेन ॥ तद् ( =तदा ) तावन्मात्रः समर भरः निर्जितः एक क्षणेन ॥ १ ॥ हिन्दी:- जो कुछ थाप (सब) से और हम सब ) से किया गया है, वह सब अनेकों पुरुष द्वारा देखा गया है। क्योंकि ( हमने ) एक क्षण मात्र में ही इतनी बड़ी लड़ाई जीत ली है-शत्रु को पलक मारत ही धराशायी कर दिया है ।। १ ।। ४-३७१ ।। ङसिङम्भ्यां तर तुज्झ तु ४-३७२ ॥ अपभ्रंशे युष्मदो ङसि - कस्यां सह त तुज्झ तुत्र इत्येते त्रय आदेशा भवन्ति ॥ होन्त श्रामदो । तुज्झ होन्तउ भागदो । तुध होन्तउ आगदी ङसा । तउगुमा - संप तुज्झ मदि तु अणुचर खन्ति ॥ जइ उपपत्तिं अन जब महि-मंडल सिक्खन्ति || ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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