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________________ [ ५०८ ] # प्राकृत व्याकरण * से रहो हुआ है। वह कारण यों है कि सूम-रचना में मर्व प्रथम 'अपातिचाप' अक्षरों वाला पद लिया जाता है और बाद में क्रमिक रूप से अधिक अक्षरों वाज्ञ पद को स्थान दिया जाता है अतएव उक्त सूत्र-रचना सिद्धान्ततः सही है और इसमें कोई भी व्यतिकम नहीं किया गया है। 'पई और तई पदों के उदाहरण क्रम से तीनों विभकियों में यों हैं:(१) स्वाम् = पई अथवा तई - तुझ को.। (२) या पई अथवा तई - तुझ से। (३) त्वार्य -पई अथवा तई - तुझ में; तुझ पर । वृत्ति में आई हुई गाथाओं का अनुवाद क्रम से यों है:संस्कृतः त्वया मुक्तानामपि घरतरो विनश्यति (फिट्टइ) न पत्रत्वं पत्राणाम् ॥ तब पुनः छाया यदि भवेत् कथमपि तदा तैः पत्रः ( एव ) ॥१॥ हिन्दी:-हे श्रेष्ठ घृक्ष ! तुझ से अलग हुए भी पत्तों का पत्तापना नष्ट नहीं होता है फिर भी यदि किसी तरह से तेरे उन पचों से उस समय भी छाया होती हो ।। 1. इस गाथा के आदि में स्वया' के स्थान पर 'पई पद का उपयोग किया गया है। संस्कृता-मम हृदयं त्वया. तया त्वं, सापि अन्येन बिनाट्यते ।। प्रिय ! किं करोम्यहं ? कि त्वं ? मत्स्येन मत्स्यः गिन्यते ॥२॥ हिन्दी:-कोई एक नायिका अपने नायक से कहती है कि हे प्रियतम ! मेरा हृदय तुम से अधिकृत कर लिया गया है और तुम उस (स्त्री विशेष ) से अधिकृत कर लिये गये थे और वह (खी) भी अन्य किसी (पुरुष विशेष) मे अधिकृत कर ली गई है। अब हे स्वामीनाथ ! (तुम ही बतलायो कि) मैं क्या करूँ ? और तुम भी क्या करो ? (इस विश्व में तो) बड़ी मछली से छोटी मछला निगल ली जाती है । (यहाँ पर तो यही न्याय है कि सबल निर्बल को सताता रहता है ।।२।। संस्कृत:-त्वयि मपि द्वयोरपि रणगतयोः को जयश्रियं तर्कपति ।। केशाहीत्वा यमगृहिणी, भण, सुखं कस्तिष्ठति ॥३॥ हिन्दी:-तुम्हारे और मेरे दोनों हरे के रण-क्षेत्र में उपस्थित होते हुए कौन विजय लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये इच्छा करता है ? आशा करता है अथवा अपेक्षा रखता है ? यमराज की धर्म-पत्नी को (अर्थात मृत्यु को) फेशों द्वारा ग्रहण करके (याने मृत्यु के मुख में चले जाने पर) कहो बोलो ! कौन सुख पूर्वक रह सकता है ? ॥२॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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