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________________ [ ४६६ ] * प्राकृत व्याकरण .000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 भग्ग देखिचि निप्रय-बलु बलु पसरिअउ परस्सु ॥ उम्मिलइ समि-रेह निय करि करवालु पियस्सु ॥१॥ अर्थः-अपभ्रश भाषा में नपुसकलिंग वाले शब्दों के अन्त में 'ककार' वर्ण हो और उस 'ककार' वर्ण का सूत्र संख्या १-१७७ से लोप हो जाने पर शेष रहे हुए अन्त्य वर्ण 'भकार' में प्रथम विभक्ति के एकवचन में और द्वितीया विभक्ति के एकत्रचन में प्राप्तव्य प्रत्यय '' और 'लोप रूप शून्य' के स्थान पर केवल '' प्रत्यय की ही आदेश प्राप्ति होती है । अन्य वर्ण 'क' को लोप हो जाने पर शेष रहे हुए 'अ' वर्ण को 'उदृच' स्वर की संज्ञा प्रान हो जाती है। ऐसे शब्दों में ही उक्त दोनों विभक्तियों के एकवचन में केवल '' प्रत्यय की यादेश प्राप्ति जानना चाहिये । जैसे:-क्षेत्रका नेतन्याँख ने अथग आँख को । अक्षिकम् अच्छिउ-आँख ने अथवा ऑन को । गाथा में आये हुए प्रथमा द्वितीया विभक्तियों के एकवचन वाले पद इस प्रकार से हैं: (१) भग्नक - भग्गङ = टूटती हुई को-मागतो हुई को। (२) प्रसूतक-यसरि अ = फैलती हुई को । (३) तुच्छ कम् = तुच्छ = तुच्छ को ॥ पूर्ग गाथा का अनुवाद यों है:-- संस्कृतः-भग्नकं दृष्ट्वा निजकं बल, बलं प्रसूतकं परस्य । उन्मीलति शशिलेखा यथा करे, करवालः प्रियस्य ॥१॥ हिन्दी-अपनी फौज को भागते हुए अथवा बिखरते हुए देख करके और शत्रु की फौज को जीतते हुए एवं फैलते हुए देख करके मेरे प्रियतम के हाथ में तलवार यो घम मतो हुई-शत्रुओं के गर्दनों को काटती हुई दिखाई देने लगी कि जिस प्रकार आकाश में उगते हुए बाल-चन्द्रमा की 'रेखा अथवा लेखा' सुन्दर दिखाई पड़ती है ॥ ४ ३५४ ।। सादे सेही ॥ ४-३५५ ॥ अपभ्रंशे सर्वोदे रकारान्तात् परस्य कसेही इत्यादेशो भवति ॥ जहाँ होन्तउ आगदो। तहाँ होन्त उ अगदो। कहां होन्तउ श्रागदो। अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में 'सव = सव' आदि अकारान्त सर्वनामों के पंचमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर 'हां' प्रत्यय रूप को आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:यस्मात् भवान् आगतः = जहां होन्त उ आगो जहाँ से आप आये हैं। (२) तस्मात भवान्भागता = तहां होन्तत आगदी वहाँ से आप पाये हैं। (३) कस्मात भवान् आगतः = कहाँ होन्तउ आगदो = कहाँ से प्राप पाये हैं ।। ४-३५५ ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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