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________________ ( ६ ) उठा सके ऐसा अब तक एक भी संस्करण प्रकाश में नहीं आया है। श्रद्धेय उपाध्याय श्री प्यारचंदजी महाराज का इस ओर ध्यान गया और उन्होंने बड़े परिश्रम और अपने गंभीर अध्ययन के बल पर आचार्य हेमचन्द्र के व्याकरण की विस्तृत हिन्दी टोका का निर्माण किया । यह हिन्दी टोका अपने कक्ष पर सर्वोत्तम टोका है। प्रत्येक सूत्र का हिन्दी अर्थ है; सूत्रों के उदाहरण स्वरूप दिये गये समग्र प्रयोगों की विश्लेषणात्मक सावनिका है और यत्र तत्र ययावश्यक शंका समाधान भी है। मेरे विचार में उक्त हिन्दी टीका के माध्यम से साधारण पाठक भी श्राचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत - व्याकरण का सर्वांगीण अध्ययन कर सकता है। श्रद्धेय उपाध्याय प्यारचन्दजी महाराज से मेरा घनिष्ट परिचय रहा है। एक प्रकार से वे मेरे अभिन्न स्नेही सहयोगी रहे हैं। विभिन्न बिखरी हुई साम्प्रदायिक परम्पराओं का विलीनीकरण के हेतु किये जाने वाले श्रमण संघ के संगठन में उनका महत्त्व पूर्ण योगदान में कभी नहीं भूल सकता हूँ। जब कभी कोई समस्या लहरी, उन्होंने अपने को भुला कर भी समाधान का मार्ग प्रस्तुत किया। अत्यन्त मृदु, शान्त, एवं उदार प्रकृति के सन्त थे । उपाध्याय श्रीजों की साहित्यिक अभिरुचि भी कुछ कम नहीं थी । साहित्यिक क्षेत्र में उनकी अनेक कृतियाँ आज भी सर्व साधारण जिज्ञासुओं के हाथों में देखी जाती हैं । उसी साहित्य निर्माण की स्वर्ण-श्रृंखला में आचार्य श्री हेमचन्द्र के प्रस्तुत प्राकृत-व्याकरण का संपादन वस्तुतः मुक्ता- मणि-कल्प है । उपाध्याय श्रीजी के सुयोग्य शिष्य-रत्न पं. श्री उदय मुनिजी सहस्रशः धन्यवादाहं हैं कि जो स्वर्गीय गुरुदेव को प्रशस्त रचनाओं को जन हितार्थ प्रकाश में ला रहे हैं। यह एक प्रकार का गुरु-ऋण है जिसको श्रद्धा-प्रक्षण मनीषी शिष्य ही यथोचित रूप से प्रदा करते हैं एवं युगयुगान्तर के लिय सुचिर यशस्वी बनते हैं । जैन - भवन लोहा मंडी आगरा १५-११-१९६६ } उपाध्याय - अमर मुनि 1.
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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