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________________ आमुख प्राकृत-भाषा जन-भाषा है । प्राकृत का क्षत्र संस्कृत से कहीं अधिक व्यापक है। धर्म, दर्शन, संस्कृति, काव्य, कोष, लोक-जीवन, इतिहास, आयुर्वेद एवं ज्योतिष, आदि महत्त्व पूर्ण विषयों के अनेक सहस्त्र ग्रन्थ प्राकृत और उसकी पुत्री स्थानीय जन-भाषाओं में उपलब्ध है । प्राकृत का मल बहुत गहग है, अतीत में बहुत दूर तक गया है । संस्कृत में कहे जाने वाले प्राचीन वेद, उपनिषद् आदि में भो यत्र तत्र प्राकृत भाषा का प्रतिबिम्ब परिलक्षित होता है । अष्ट्रावक विश्वामित्र, विश्वावसु, हरिश्चन्द्र, सिंह, शाखा आदि वर्णागम और विपर्यय बाले संस्कृत-भाषा में सहस्राधिक शब्द-रूप एसे हैं जो मूलतः संस्कृत के नहीं ; प्रावात भाषा का उत्कृष्ट अध्ययन किये बिना भारतीय जन-जोवन एवं भारतीय संस्कृति की मूल धारा को ठोक तरह नहीं देखा-परखा जा सकता। किसी भी भाषा का अध्ययन ब्याकरण पर आधारित है। व्याकरण मुख है। "मुखं व्याकरणम् स्मृतम्" व्याकरण का अध्ययन किये बिना जो किसी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं वे भूल में हैं। इस प्रकार का पांडित्य मूल-माही न होकर केवल पल्लवनाही होता है; और पल्लव ग्राही पांडित्य अपन लिये भी विडम्बना का हेतु है और दूसरों के लिये भी । यही कारण है कि भारतीय मनीषियों ने व्याकरण के अध्ययन पर अत्यधिक बल दिया है । यहाँ व्याकरण की एक पूरी को पूरी विद्या शाखा ही बन गई है। एक व्यक्ति यदि व्याकरण साहित्य का अध्ययन करता चला जावे तो अनुश्रुति है कि इसी में बारह वर्ष जितना दीर्घ काल लग जाय । "द्वादशभिर्वव्याकरणं श्रयते" विष्णु शर्मा की यह सदुक्ति व्याकरण साहित्य की विपुल समृद्धि की ही परिचायिका है। अस्तु । प्राकृत-भाषा का भी अपना म्बतन्त्र व्याकरणसाहित्य है । चण्ड, त्रिविक्रम, वररुचि आदि अनेक प्राचीन विद्वानों ने प्राकृत व्याकरण को रचना की हैं। वे व्याकरण प्रचारित हैं और उन पर अनेक टीकाएँ और उपटीकाएँ भी लिखी गई हैं परन्तु उक्त समग्र व्याकरणों से नवीन शैली में लिखा गया सरल, सुगम, एवं सुबोध व्याकरण आचार्य हेमचन्द्र का है। प्राचार्य हेमचन्द्र विरचित प्राकृत व्याकरण एक हो ऐसा सर्वांगीण व्याकरण है, जिससे मागधी, अर्थ मागधो, शौरसेनी, पंशाची, अपभ्रंश आदि प्राकृत की अनेकविध शाखाओं का सम्पग-परित्रोध हो सकता है । प्रस्तुत व्याकरण के अद्यावधि अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं अतः वे सभी अपनी अपनी भूमिका पर उपयोगी भी हैं । परन्तु प्राकृत-भाषा का साधारण अध्येता भी उक्त व्याकरण से लाभ
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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