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________________ [१५] * पाकृत व्याकरण 2 ____ छस्य श्चोनादौ॥ ४-२६५ ।। मागध्यामनादी वर्तमानस्य छस्य तालव्य शकाराक्रान्तः चो भवति ॥ गश्च गश्च ।। उश्चलादि । पिश्चिले । पुश्नदि ॥ लाक्षणिकस्यापि । आपन्न -वत्सलः । श्रावन्न-वश्चले ।। तिर्थक् प्रेचते । तिरिच्छि पेच्छइ । तिरिश्चि पेस्कदि । अनादाविति किम् । छाले ॥ अर्थ:-संस्कृत भाषा में यदि किसी भी पद में छकार आदि अक्षर के रूप में नहीं रहा हुश्रा हो और हलन्त अवस्था में भी नहीं हो तो उम 'छकार के स्थान पर मागधी भापा में 'हलन्त तालव्य शकार' के साथ साथ 'चकार' की प्राप्ति हो जाती है । यो अनादि 'छकार' के स्थान पर 'श्व की प्राप्ति मागधीभाषा में जाननी चाहिये । जैसे:- (१) गच्छ, गच्छ - गश्च, गश्च = शाश्री, जाओ। (0) उच्छलति = उपचलदि- वह उछलता है। (३) पिच्छिलः = पिश्चिले = पख वाल।। (४) पृच्छति - पुरचदि = वह पूछता है। व्याकरण के नियमानुसार संस्कृत-भापः सं प्राकृत भाषा में भो यदि किसी व्यम्जन के स्थान पर 'छकार' की प्राप्ति हुई हो तो उस स्थानापन्न 'छकार' के स्थान पर भा मामधी-भाषा में 'हलन्त तालव्य शकार सहित चकार' को-प्रर्थात् 'श्च' की प्रामि हो जाया करती है । जैस:- (१) आपन्न -वत्सलः = आषण-पच्छली = श्रावन-वश्चले = जिम को प्रेम-भावना को प्रासि हुई ही वह । (२) तिर्यक प्रेक्षते - तिरिच्छ पेच्छा = तिरिर्वच पस्कदि - वह टेढ़ा देखता है। प्रश्न:--'अनादि' में रहे हुए 'छकार' के स्थान पर ही 'श्च' की प्रालि होती है; ऐसा क्यों कहा गया है। उत्तरः-जयोंकि यदि 'छकार' क्यजन 'शब्द के आदि में' रहा हुआ होगा तो इस छकार के स्थान पर 'श्च' को प्राप्ति नहीं होगी । जैसे:-भार:- छारों-छाल - अखेने के पश्चात बचा हुआ हार अथवा खार पदार्थ विशेष । यो आदि 'छकार' को 'श्च' की प्राप्ति नहीं है ।। ४.२६५ ।। क्षस्य कः ॥४-२६६ ॥ मागध्यामनादी वर्तमानस्य सस्य को जिह्वामूलीयो भवति ॥ य के लकिशो ॥ अनादावित्येव । खय-यल-हला । क्षय जलधरा इत्यथः ।। ___ अर्थः-संस्कृत-भाषा में अनादि रूप से रहे हुए 'क्ष' के स्थान पर मागधी-भाषा में 'जिम्हामूलोय ४क' को प्राग्नि हो जाती है। जैसेः-११) यक्ष-यक- यज्ञ जाति का देवता विशेष । (२) राक्षसः । = कशे = राक्षस, बाण-व्यन्तर जाति का देव विशेष ।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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