SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [४५३ ] ........monsoredoot00000rnorrorroreore...00000rsonantoshootino.000m प्रश्न:-अनादि रूप से रह हुए 'क्ष' के स्थान पर ही मागधी-भाषा में 'जिव्हामुलीयक' की प्राप्ति कानी है। ऐसा को कहा गया है ? उत्तरः-यदि 'क्षकार' अनादि में नहीं कर 'आदि में रहा हुआ होगा तो उसके स्थान पर मागधी-भाषा में जिला मूलीय! क' की प्रानि नहीं होगी। जैसे:-क्षय-जलधरा: = खय-पलहला = नष्ट हुए बादल । यहां पर आदि कार को खकार की प्राप्ति हुई है ॥ ४.२६६। स्कः प्रेक्षाचक्षोः ॥ ४-२६७ ।। मागध्या प्रेक्षेराचक्षेश्च क्षस्य सकाराक्रान्तः को भवति ॥ जिव्हामूलीयापवादः ।। पस्कदि । आचस्क्रदि ॥ अर्थ:-संस्कृत-भाषा के प्रेक्ष' और 'पाचक्ष' में स्थित 'कार' के स्थान पह मागधों माषा में 'हलन्त मकार' माहत कार' की प्राप्ति होती है । यह सूत्र उपरोक्त सूत्र संख्या ४-२६६ के प्रति अपवाद स्वरूप सूत्र है । उदाहरणों यां हैं:---(१) प्रेक्षते - पेस्कदि = वह देरनता है । (२)आचक्षते = आचस्कवि = वह कहता है ।। ४-rs || तिष्ठ श्चिष्ठः॥ ४-२६८ ॥ मागच्या स्थाधातीय स्तिष्ठ इत्यादेशस्तस्यचिष्ठ इत्यादेशो भवति ॥ चिष्ठदि ।। अर्थः-संस्कृत-धातु स्था' के स्थान पर निष्ठ' का आदेश होता है और उमी आदेश प्राप्त 'तिष्ठ' धातु-रूप के स्थान पर भागधी भाषा में 'चिष्ठ' धातु रूप को आदेश प्राप्त हो जाती है। जैसेतिष्ठति -चिठदि = वह बैठता है ।। ४.२१८ ।। अवर्णाद्वा ङसो डाहः ।। ४-२६६॥ मामध्यामवर्णात् परस्यङ सोडित् प्राह इत्यादेशो या भवति ॥ हगे न एलिशाह कम्माइ काली । भगदत्त-शोणिदाह कुम्भे । पक्षे । भीमशेणस्स पश्चादी हिराही अदि। हिडिम्बाए घडुकयशोकण उपशमदि। अर्थ:-मागधी भाषा में पष्ठी विक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिग में अथवा नपुंसक लिंग में प्राप्तव्य प्रत्यय 'कुस =स के स्थान पर विकलम से 'डाह - श्राह' प्रत्यय को आदेश-प्राप्ति होती है । सूत्र में उल्लिखित 'डाह' प्रत्यय में स्थित कार से संज्ञा शब्दों में स्थित अन्त्य 'अकार' को इत संज्ञा अर्थात लोप स्थिति प्राप्त होता है; ऐसा तात्पर्य प्रार्शित है । उदाहरण यों है-(१) अहम न ईदृशः
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy