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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [४५१] 0000000000000000000000orons.orrowersoor00000000000000000000000000000m फिल = निश्चय ही आज । (३) विधाघरः =आगत::विय्याहले आगढ़े = विधाघर (देवता विशेष) आगया है।। 'य' के उदाहरण:-(१) यातिन्यादि जाता है। (0) यथासरूपम् यथा शलू वं-समान रूप त्राला । (३) यानवर्तम् =याणवत्तं = वाहन त्रिशेप का होना। (४) यति = यदि = मन्याप्ती ।। इसी व्याकरण के प्रथम पाद में सूत्र-संख्या २४५ में श्रादेयों जः' के विधानानुसार यह बतलाया गया है कि संस्कृत भाषा के शब्दों में यदि आदि में यकार' हो तो उसके स्थान पर 'जकार' की प्राप्ति हो आती है; इस विधान के प्रतिकूल मागधो-भाषा में यकार' के स्थान पर 'यकार' ही होता है, 'जकार' नहीं होता है; ऐसा बतलाने के लिय हो इस सत्र में 'ज' और 'वा' के साथ-साथ 'य' भी लिखा गया है। जो कि ध्यान में रखने के योग्य है। यों यह सूत्र उक्त सूत्र-पख्या १.२४५ के प्रतिकूल है अथवा अपवाद स्वरूप है, यह भी कहा जा सकता है । जैसेः-यतिः- यदी = माधु अथवा संन्यासी ॥ ४.२६२।। न्य-गय-ज्ञ-जां यः ॥४-२६३ ॥ मागध्यां न्य एय-ज्ञज इत्येतेषां द्विरुक्तो जो भवति ।। न्य । अहिमञ्ज कुमाले । अचदिशं । शामज-गुणे । कञका-बलणं ।। ण्य । पुत्रवन्ते । अत्रम्हों । पुजाहं । पुञ्ज । ज्ञ। पाविशाले । शबने । अवदा ।। च । अञ्जली धणझए । पझले ॥ अर्थ:--संस्कृत भाषा के शब्दों में रहे हुए 'न्य, एय, ज़, ज' के स्थान पर मागधी भाषा में द्वित्व 'म' को प्राप्ति होती है । जैसे--'न्य' के उदाहरण:--(१) अभिमन्यु कुमारः = अहिमकुमालेअजुन नामक पाडव का पुत्र । (१) अन्य दिशम् = अन दिशं = दूसरी दिशाको । (३) सामान्यगुण शामन गुणे -माधारण गुण । (४) कन्यका वरण-कञका वलण - पुत्री को सगाई करने सम्बन्धी पाक्य विशेष || 'एय' के उदाहरणः---(१) पुण्यवन्तः = पुरुषन्त = पुण्यवाले, अच्छे कर्मों वाले । (२) अब्रहमण्यम् अवाहक-ब्राह्मण के प्राचगण करने के योग्य नहीं । (३) पुण्याहस - पुञ्आह-आशीवाद और (४) पुण्यम् = पुरुन = पवित्र काम, शुभ कार्य । 'ज्ञ' के उदाहरणः-(१) प्रज्ञाविशालः - पाविशाल - विशाल बुद्धि वाला । () सर्वज्ञः = शव्याने - सब कुछ जानने वाला। (३) अवज्ञा = अकत्रातिरकार, अनादर । 'ज' के नदाहरण:-अजलि अली -हथेली से निर्मित पुट विशेष (२) धनाजयः धणजय = अजुन पांडु-पुत्र । (३) पजरः = पबले - शस्त्र विशेष बजो जः ।। ४-२६४ ॥ मागध्यां बजे जंकारस्य ओ भवति ।। पापवादः ॥ वझदि । अर्थ:--संस्कृत भाषा में रही हुई धातु 'ब्रज' के 'ज' व्यसन के स्थान पर मागधी-भाषा में द्वित्व 'ज' की प्राप्ति होती है । यो यह नियम उपरोक्त सूत्र संख्या ४-२६२ के लिये अपवाद स्वरूप समझा जाना चाहिये । उदाहरण यों है:-वजाति = वदि वह जाता है ।। ४-२६४ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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