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________________ [ ४३२ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * wroorderrorerterrorrordrostatestrandoverroristomorr00000000000rom अथ शौरसेनी-भाषा-व्याकरण-प्रारम्भ तो दोनादौ शोरो-शामयुगातरम ॥ ४-२६० ॥ शौरसेन्या भाषायामनादावपदादौ वर्तमानस्य तकारस्य दकारो भवति, न चेदमौ वर्णान्तरण संयुक्तो भवति ॥ तदो पूरिद-पदिप मारुदिण! मन्निदो ।। एतस्मात् । एदाहि । एदाओं । अनादाविति किम् । तथा काध जया तम्स राइणो अणु कम्पणीया भौमि ॥ अयुक्त स्पति किम् । मत्ती । अग्य उचो प्रप्तंभाकिद.सकारं । हला सउन्तले ॥ अर्थ:--अब इस सूत्र-संख्या-४-२० से प्रारम्भ करके सूत्र-मनपा-१-२.६ तक अर्थात मत्तावोस सूत्रों में शौरसेनी भाषा के व्याकरण का विचार किया जायगा । इस में मून श? संस्कृत भाषा का हो होगा और उसो शब्द को शौरसेनोन्मापा में रूपान्तर करने का संविधान प्रदर्शित किया जायगा । शौरसेनी-भाषा में और प्राकृत-भाषा में सामान्यतः एक रूपता ही है, जहाँ जहाँ अन्तर है, उसी अन्तर को इन सत्तावीस-सूत्रों में प्रदर्शित कर दिया जायगा। शेष सभा सावधान तथा रूपान्तर प्रानभाषा के समान ही जानना चाहिये। शौरसेनी भाषा एक प्रकार से प्राकृत हो है अथवा प्राकृत भाषा का अंग ही है। इन दोनों में प्रव प्रकार से समानता होने पर भी जो अनि अल्प अन्तर है, वह इन सत्तावीस सूत्रों में प्रदर्शित किया जारहा है। संस्कृत-नाटकों में प्राकृत-यांश शौरसेनी-भाषा में ही मुख्यतः लिखा गया है। प्राचीन काल में यह भाषा मुख्यतः मथुरा-प्रदेश के आस पास मे हो बोली जाना था। संस्कृत-भाषा में रहे हुए 'सकार' व्यन्जनाक्षर के स्थान पर शौरसेनी भाषा में 'द व्यञ्जनाक्षर की प्राति उन समय में हो जाती है जब कि- (१) 'तकार' ४ जनाक्षर वाक्य के आदि में हो रहा हुआ हो, (२) जब कि वह 'तकार' किनी पद में आदि में भी न हो और (३) जब कि वह 'नकार' किमी अन्य हलन्त यजनाक्षर के साथ संयुक्त रूप सं-( मिले हुए रूप से-संधि-रूप से ) भी नहीं रहा हुमा हो तो उस 'तकार' व्यरुजनाक्षर के स्थान पर 'दकार' की प्रापि हो जाय।।। उदाहरण इस प्रकार है:ततः परित-प्रतिज्ञने मारुतिना मन्त्रितः सदी परिद-पदिनेश भासविणा मन्तिदो = इसके पश्चात पूर्ण की हुई प्रतिज्ञा वाले हनुमान से गुम मंत्रणा की गई । इस उदाहरण में 'ततः' मं 'त- का 'द' किया गया है । इसी तरह से 'पूरित, प्रतिज्ञन, मारुतिना, मन्त्रितः' शब्दों में भी रहे हुए 'तकार व्यजनाक्षर के स्थान पर 'वकार' व्यञ्जनाक्षर की प्राप्ति हो गई है। [1] एतस्मात - एदाहि और एदाभो हमसे । इस उदाहरण में भी 'तमार' के स्थान पर 'दकार' को आदेश-प्राप्ति की गई है। यों अन्यत्र भी ऐसे स्थानों पर कार' की स्थिति को समझ लेना चाहिये।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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