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________________ * प्राकृत व्याकरण * [४३१ ] +++000000000000000000000000000000000000000000000000000000 पूरयति = फिर से भरता है, फिर से परिपूर्ण करता है । यहाँ पर 'पछि' उपसर्ग होने से खींचना' अर्ध नहीं निकल कर 'परि पूर्ण करना' अर्थ निकल रहा है। (८) परिहरइ = त्यजति = वह छोड़ता है-वह त्याग करता है । यहाँ पर 'हरण करना-छोनना' अर्थ के स्थान पर 'त्याग करना' अर्थ बसलाया गया है । (९) उबहरइ = रजयति = वह पूजता है-दह आदर सम्मान करता है ।यहाँ पर 'अर्पण करना' अथ नहीं किया जा कर पूजा करना' अर्थ किया गया है । (१०) शहरइ = आइधयति = वह बुलाता है अथवा वह पुकारना है। यहाँ पर 'वा' उपसर्ग को जोड़ करके 'हर' धातु के 'हरण करना' अर्थ को हटा दिया गया है। (११) वसई = देशान्तरं गच्छतिवह अन्य देश को-परदेश को जाता है। यहाँ पर 'प' उपसर्ग पाने से 'वस' धातु के रहना अर्थ का निषेध कर दिया गया है। (१०) उच्चपड़ = चटाति = वह चढ़ता है. यह आरुद होता है, वह उपर बैठता है। यहाँ पर भी 'उत्मच' उपसर्ग पान स अथ -भिन्नता पंदा ही गई है।।१२) उल्लुहा=निःसरति = वह निकलता है। यहाँ पर 'उत - उल' उपमग कामदुभावहान से 'लुहे' धात. 'पोंछना साफ करना' अर्थ के स्थान पर 'निकजना' अर्थ बतलाया है। यों उम्पर्गों के साथ में धातुओं के अर्थ में बड़ा अन्तर पड़ जाता है तथा अर्थातर को प्राति हो जाता है; यही तात्पर्य व्याकरण कार का यहाँ पर सन्निहित है । तदनुसार इस संविधान का सदा ध्यान में रखना चाहिये ।। ४-२५६ ।। इति प्राकृत-भाषा-व्याकरण-विचार-समाप्त
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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