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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * mor.000000000000000000000000000000****************0000000000000for
तेनास्याः प्रमदास्वभावसुलभरुचावचैश्चापले
स्ते वाचंयम-सयोपि मुनयो मौनत्रतं त्याजिताः ॥१॥ अर्थ:-हे राजाओं में मणि-समान श्रेष्ठ राजम् ! तुम्हारी यशकीर्ति ऊँचाई में तो स्वर्ग लोक तक पहुंची हुई है और नीचे पाताल लोक की अन्तिम-सीमा तक का स्पर्श कर रही है। मध्य-लोक में यही श निटी को पेसो पाग महासमुद्र के भो उस द्वितीय किनारे को पार कर गई है। तुम्हारी यह कीर्ति स्त्री-स्वरूप होने के कारण से स्त्रो-जन-स्वभाव-जनित इसकी सुलभ चंचलता के कारण से वाणी पर नियंत्रण रखने वाले तथा वाचं-यम-चि के धारण करने वाले मुनियों को भी अपना मौनप्रत छोड़ना पड़ रहा है । अर्थात् मौन-धन को प्रहण किये हुए ऐसे बड़े-बड़े मुनिराजों को भी प्रापका विशद तथा विमल फीर्ति ने बोलने के लिये विवश कर दिया है।
ॐ ! सर्व विदे नमः !!
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