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________________ . प्राकृत व्याकरण * ++0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000064 [ ३४३ ] अथ चतुर्थ पादः इदितो वा ॥४-१॥ सूने ये इदितो धातवो वक्ष्यन्ते तेषां ये आदेशास्ते विकल्पेन भवन्तीति वेदितव्यम् । तत्रैव चोदाहरिष्यते ।। __ अर्थ:- यहाँ से भागे जिन सूत्रों में सं कृत-धातुओं के स्थान पर प्राकृत में श्रादेश-विधि कही जायगी; उन सभी श्रादेश-प्राप्त धातुओं की स्थित्ति विकल्प से ही होती है। ऐसा जानना चाहिये । मादेश प्राप्त धातुओं के उदाहरण यथा स्थान पर, वहाँ पर ही प्रदर्शित किये जाएँगें । कहने का तात्पर्य यह है कि संस्कृत-धातुधों के स्थान पर प्राकृत-भाषा में एक ही धातु के स्थान पर एक ही अर्थ वालो अबेक धातुओं के शब्द रूप पाये जाते हैं। उन सभी का संग्रह इस चतुर्व-पाद में आदेश रूप से एवं वैकल्पिक रूप से किया गया है । ५-१।। कथेबज्जर-पज्जरोप्पाल-पिसुण-संघ-बोल्ल-चव -जम्प-सीस-साहाः ॥४-२॥ कथे (तोर्वज्जरादयो दशादेशा वा भवन्ति ।। यज्जरइ ! पन्जरइ। उप्पालइ । पिसुणइ । संघइ । बोरलइ । चाइ । अम्पइ । सीसइ। साहइ ॥ उन्बुक्कइ इति तूत्पूर्वस्य बुक्कभाषखे इत्यस्य । पचे। कहइ ॥ एते चान्यैर्देशीषु पठिता अपि अस्माभिर्धात्वादेशीकृता विधिधेषु प्रत्ययेषु प्रतिष्ठन्तामिति । तथा च । बजरियो कथितः वज्जरिऊण कथयित्वा । वज्जरणं कथनम् । वज्जरन्तो कथयन् । बजरिअव्वं कथयितव्यमिति रूप सहस्राणि सिध्यन्ति । संस्कृत-धातुषच्च प्रत्ययलोपागमादि विधिः ॥ अर्थ:-संस्कृत धातु 'कच' अर्थात 'कहना' के स्थान पर प्राप्त-भाषा में दश प्रकार के आदेश रूपों की विकल्प से प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार हैं:-क (1) वजर, (२) पज्वर, (३) उप्पाल, (४) पिसुण, (५) संघ, (६) बोल्न. १७) १८. १८) सम्प, (६) सीस और (१०) कह । इन धातुओं में और मागे पाने वाली सब प्रकारान्त धातुओं में सूत्र-संख्या ४.२३६ से विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति होकर म्यअनान्त धातुओं जैसी स्थिति से थे धातु 'अकारान्त' स्थिति को प्राप्त हुई हैं। इन प्रकारान्त रूप से दिखाई पड़ने वाली धातुओं के सम्बन्ध में इस स्थिति का सदैव ध्यान रहे।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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