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________________ [ ३२४ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * moor.0000000000000000000rsovotrorestronomrossdrensoo.0000000000000 अर्थ:-प्राकृत-भाषा में वर्तमानकाल क; भविष्यतकाल के; माज्ञार्थक; विधि-अर्थक और श्राशीषधक के तीनों पुरुषों के दोनों वचनों में प्रामध्य सभी प्रकार के प्रत्ययों के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ज और ब्ला' प्रत्ययों की श्रादेश-प्राप्ति हुश्रा करती है और इस प्रकार ask er या ज्जा' प्रत्यय की ही संयोजना कर देने से उक्त लकारों के किसी भी प्रकार के पुरुष के किभी भी वचन का अर्थ संदर्भ के अनुसार उत्पन्न हो जाता है। यह स्थिति वकल्पिक है। अतपत्र पक्षान्तर में उक्त लकारों के अथ में कहे गये प्रत्ययों की प्राप्ति भी यथा-नियमानुसार होती ही है। वर्तमानकाल का हटान्त इस प्रकार है:-हसति, ( हसन्ति, हसास, इसथ, हसामि और हसामः) = हसेज और हसंज्जा = पक्षान्तर में-हसह (इसप, हसन्ति, हसन्ते, हसिरे, हससि, हससे, हसिस्था, हसह, हमामि, हप्तामो, हप्तामु और हमाम )= वह हँसता है; ( वे हँसते है; तू हँसता हे. तुम हंसते हो; मैं हँसता हूं और हम हँसते हैं। दूसरा उदा. हरण:-पठति-( पठन्ति, पठास, पठथ, पठामि और पठामः ) - पढेल और पढे जा-पक्षान्तर में-पढ; ( पढ़ए, पढन्ति, पढन्से, पांढरे, पदसि, पढसे, पढिस्था, पढह, पढामि, पढामो पढामु और पढाम )-वह पढ़ता है; ( वे पढ़ते है; तू पड़ता है। मुम पढ़ते हो; मैं पढ़ता हूं और हम पढ़ते हैं )। तीसरा उदाहरण:श्रृणोति- श्रृण्वन्ति, श्रृणोषि, श्रृणुथ, श्रृणोमि, और श्रृणुमः श्रथया श्रृण्म: )- सुरणेज्ज अथवा सुणेज्जापक्षान्तर में सुण; ( सुरणप; सुगन्ति, गुणन्त, सुणिरे, सुसि, सुणसे, सुणिस्था, मुगाह, सुणामि, सुणामो, सुरणामु और सुणाम ) वह मुनता है; (घे सुनते हैं; तू सुनता है; तुम सुनते हो; मैं सुनता हूं और हम सुनते हैं। भविष्यत-काल का बदाहरण इस प्रकार है:–पठिष्यति-(पठिष्यन्ति, पठिष्यसि, पठिप्यध, पठिध्यामि और पठिष्यामः ) = पढेज्ज और पढेज्जा; पक्षान्तर में पढिहिद (पढिहिए, पढिहिन्ति पढिाहन्ते पढिहिरे, पढिहिमि, पढिहिस; पाहत्था, पढिहिह. पढिाहमि, पडिहिमो, पढिहिमु, पढिहिम ) = वह पढ़ेगा (चे पड़ेंगे, तू पढ़ेगा, तुम पढोगे; मैं पढूंगा और हम पढ़ेंगे )। मानार्थक और विधि-अर्थक के मशः उदाहरण इस प्रकार हैं:-हसतु-हमतात ( हसन्तु; हस-हसतात और हसत; इसान तथा हसाम } तथा हसेस (हसंयुः: हसेः और हसेत; हसेयम् तथा हसेम )- इसेज और हसिजा अथवा हसेंजा पक्षान्तर में हस3 ( हसन्तु; हम्सु तथा हसह; सामु और और हसामो ) - वह हँसे; ( व हस; तू हेस तथा तुम हो, मैं हँसू और हम हसें ); वह हंसता रहे; { व हंसते रहें; तू हंसती रह तथा तुम हँसते रहो; मैं इंसता रहूं और हस हससे उन्हें ) । यो क्रम से लोट लकार के तथा लि लकार के 'न-जा' प्रत्ययों के साथ में प्राकृत रूप जानना चाहिये । यही पद्धति अन्य प्राकृत धातुओं के सम्बन्ध में भी 'न अथवा जा' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर वर्तमानकाल, भविष्यसकाल, आज्ञार्थक लकार और विधि-अर्थक लकार के अर्थ में तीनों पुरुषों के दोनों वचनों के सद्भाव में समझ लेना चाहिये । इसी तात्पर्य को समझाने के लिये पुन: दो उदाहरण कम से और दिये जाते हैं:-श्रतिपातयति { अतिपातयति अतिपातयसि, अतिपातयथ, अतिपातयामि और अति
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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