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________________ * प्राकृत व्याकरण * [ ३२५ ] पालयामः )= अवाएजा और अइवायावेज्जा = वह उल्लंघन कराता है; (वे उल्लंघन कराते हैं; तू पल्लंघन करता है तुम उल्लंघन कराते.हो; मैं उल्लंघन कराना हूँ और हम उल्लंघन कराते है)। इस प्रकार से प्राकृत क्रियापद के रूप 'अहवाएजज और इवायावेज्जा' का अर्थ वर्तमानकाल के प्रेरणार्थक भाव में किया गया है। किसी भी प्रकार का परिवर्तन किये बिना इन्हीं प्राकृत क्रियापद के रूपों द्वारा भविष्यकाल के, श्राज्ञार्थक लकार के और विधि प्रर्थक लकार के तानों पुरुषों क दोनों वचनों में भी प्रेरणार्थ भाव की अभिव्यञ्जना उपरोक्त वर्तमानकाल के समान ही की जा सकती है। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है:--न समनुजानामि = न ममरगुजाणामि अथवा न समगुजाणज्जामैं अनुमोदन नहीं करता हूँ अथवा मैं अच्छा नहीं मानता हूं। इस उदाहरण में यह बतलाया गया है कि वर्तमान काल के तृतीय-पुर, ३ को .. ६. व दान के प्रा. .:५य ' मिसान पर मा प्रत्यय की श्रादेश-प्राजि हुई है गपकार इस प्रकार की विवेचना करके यह सिद्धान्त निश्चित करना चाहते हैं कि प्राकृत-भाषा में वर्तमानकाल के, भविश्यकाल के, प्राज्ञार्थक के और विधि अर्थक के नान पुरुषों के दोनों वचनों के अर्थ में धातुओं में प्राप्तव्य सभी प्रकार के प्रत्ययों के स्थान पर 'ज अथवा जा' इन दो प्रत्ययों को मैकल्पिक रूप से धादेश प्राप्ति होती है। प्राकृत भाषा के अन्य वैयाकरण विद्वान यह भी कहते हैं कि संस्कृत भाषा में पाये जाने वाले काल-वाचक दश ही लकारों के तोनों पुरुषों के सभी प्रकार के वचनों के अर्थ में प्राप्तम्य कुज ही प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत में 'ज अथवा जा' प्रत्यय की संयोजना कर देने से प्राकृत-भाषा में वक्त लकारों के सभा पुरुषों के इष्ट-वचन का तात्पयं अभिव्यक्त हो जाता है। इस मन्तव्य का संक्षिप्त तात्पर्य यहा है कि धातु में किमी भी काल के किसी भी पुरुष के किसी भी वचन में केवल जज अथवा जा' प्रत्यय को जोड़ देने से उक्त काल के वक्त पुरुष के उक्त वचन का अर्थ परिस्फुटन हो जाता है। उदाहरण इस प्रकार हैं:भवति, भवन , भवतु. अभवन, अभून बभूव, भूयान, भविता, भविष्यति और अभविष्यत होऊज = वह होता है, वह होवे; वह हो; वह हुआ, वह हुआ था; वह हो गया था; वह होने योग्य हो, वह होने वाला हो, वह होगा और वह हु प्रा होता । इस उदाहरण से प्रतीत होता है कि प्राकृत के क्रियापद के कप 'हो' से हा किसी भी लकार के किसी भी पुरुष के किसी भी वचन का अर्थ निकाला जा सकता है। प्राकृत भाषा में यों केवल दो प्रत्यय ही 'जन और जा सावालिक और मात्रानिक तथा सार्वपौरुषेय हैं । किन्तु ध्यान में रहे कि यह स्थिति वैकल्पिक है। हसति, हसन्ति, हससि, हसथ, हसाम ओर हसामः संस्कृत के वर्तमानकाल के तीनों पुरुषों के क्रमशः एकवचन के और बहुवचन के अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इनके प्राकृन रूप समान रूप से एवं समुकचय रूप से इसेज और इसेमा होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ४-२३६ से मूल प्राकृतहलन्त धातु इस' में विकरण प्रत्यय 'अ' को प्रान्ति; ३.९५६ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर आगे प्राप्त प्रत्यय ज और जा' का सदभाव होने के कारण से 'ए' की प्राप्ति और ३.१७७ से प्राप्तांग 'इसे' में उक्त वर्तमानकाल के तीनों पुरुषों के दोनों वचनों के अर्थ में प्राप्तम्य सभी संस्कृतीय प्रत्ययों के
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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