SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 100000000000000000rsonot00000srrow00000000000rstarter00000000000000+ एकवचन बढुवचन प्रथम पुरुष-हिइ, हिए हिन्ति हिन्त, हिहरे द्वितीय " हिास, हिसे हित्था, हिह । तृतीय ' हिम हिमो, हिम. हिम। तृतीय पुरुष के एकवचन में तथा बहुवचन में वैकल्पिक रूप से अन्य प्रत्यय भी होते हैं; उनका वर्णन भागे मूत्र संख्या ३-१६७; ३ १६८ और ३-१६६ श्रादि में किया जाने वाला है। इस प्रकार ग्रंथकार का तात्पर्य यही है कि भविष्यत् काल के अर्थ में धातु में सर्व प्रथम हि' का प्रयोग किया जाना चाहिये; तत्पश्चात वर्तमान-काल-बोधक प्रत्ययों की संयोजना की जानी चाहिये। जैसे:-भविष्यात अथवा भविता - हाहिद-होगा अथवा होने वाला होगा। भविष्यन्ति अथवा भथितार:-होहिन्ति - होंगे अथवा होने वाले होंगे । भविष्यात अथवा भवितामि हाहिमि - तू होगा अथवा तू होने वाला होगा। भविष्यथ अथवा भवितास्थ = होहिया - तुम होंगे अथवा तुम होने वाले होंगे। हमिष्यति अथवा हसिताइसिहिद-वह हँसेगा अथवा हमने वाला होगा करिष्यति थाथवा कर्ता = काहिइ-वह करेगा अथवा करने वाला होगा । इन सदाहरणों से प्रतीत होता है कि मंस्कृत में प्राप्तव्य भविष्यत्-काल वाचक लुट् लकार और लट् लकार के स्थान पर प्राकृत में केवल एक ही लकार होता है तथा इसी सामान्य लकार के श्राधार से ही भविष्यत-काल वाचक दोनों लकारों का अर्थ प्रतियनित हो जाता है। भावष्यति अथवा भविता संस्कृत के क्रमशः भविष्यत-काल वाचक लट् लकार और लुट्लकार के प्रथम पुरुप के एकवचन के रूप हैं । इनका प्राकृत रूप होहिइ होना है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल संस्कृत-धातु 'भ - भव' के स्थान पर प्रकृति में 'हो' अग-रूप की प्राति ३.६ से भविष्यत काल के अथ में प्राप्तांग 'हो' में हि' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१३६ से भविष्यत काल के मर्ध में प्राप्तांग हो' में प्रथम पुरुष के एकवचन के अर्थ में इस्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप 'हो' मिद्ध हो जाता है। भविष्यन्ति, भवितारः संस्कृत के भविष्यत काललायक लुट लकार और लुट् लकार के प्रथम पुरुष के बहुवचन के रूप है। इनका प्राकृत रूप (एक ही) होहिन्ति होना है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६० में मूल संस्कृत धातु 'भू-भव' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' अङ्ग रूप की प्राप्ति; ३-१६६ से भविष्यकाल के अर्थ में प्राप्तांग 'हो' में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१४२ से भविष्यात काल के अर्थ में शप्तांग होहि' में प्रथम पुरुष के बहुवचन के अर्थ में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हौछिन्ति रूप सिद्ध हो जाता है। भावयास अथवा भाषितास संस्कृत के क्रमशः भविष्यत्कालवाचक लुट् लकार और लुट् लकार के द्वितीय पुरुष के एकवचन के रूप है । इनका प्राकृत रूप (समान रूप से) होहिसि होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल संस्कृत धातु भू-भव' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' अक्षरूप की प्रारित
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy