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________________ * प्राकृत व्याकरण * ३०३ ) 00000000000000000000000000000000000000000000000000 Porowwwererneerrearmerrorirem.. ३-१६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हो' में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१४० से भविष्यतकाल के साथ में प्राप्तांग होहि' में द्वितीय पुरुष के एकवचन के अर्थ में 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर होहिास रूप सिद्ध हो जाता है। भविष्यथ अथवा भवितास्थ संस्कृत के क्रमश: भविष्यत काल-बाचक लट् लकार और झुटलकार के द्वितीय पुरुष के बहुवचन के रूप हैं। इनका प्राकृत-रूप (समान रूप से) होहत्या होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-६० से मूले संस्कृत धातु 'भू-भव' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' अंग-रूप की प्राप्ति: ३.१६६ से भविष्यत् काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हो' में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१८ से भविष्यत कालश्रर्थक प्राप्तांग 'होहि' में स्थित अन्य स्थान का नाम सुरु थे। प्रत्यय इत्या' में स्थित श्राद स्वर 'ई' का सद्भाव होने के कारण से लो, ३-१४३ से भविष्यत काल के अर्थ में प्राप्त हलन्त अंग 'होई में द्वितीय पुरुष के बहुवचन के अर्थ में 'इत्या' प्रन्यय की प्राप्ति और ६.५ से प्राप्त रूप होह और इत्या की संधि होकर होहित्था रूप सिद्ध हो जाता है। ___ हासण्यात अथवा हसिला सस्कृत के क्रमशः भविष्यत् काल-बापक लद लकार और लुटलकार के प्रथम पुरुष के एकवचन के रूप हैं । इन का प्रावृत्त-रूप (समान रूप से) हसिहिद होता है। इसमें सूत्र-संख्या-३-६५७ से मूल प्राकृत-धातु 'हस' में स्थित अन्रय 'अ' के स्थान पर आगे भविष्यत कालवाचक प्रत्यय 'हि' का सद्भाव होने के कारण से 'इ' की प्राप्ति; ३-१६६ से भविष्यत-काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हप्ति' में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१३६ से भविष्यत काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हसिह' में प्रथम पुरुष कं एवघम के अर्थ में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'हासहिद' रूप सिद्ध हो जाता है। 'काहि कियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १५ में की गई है 1 ३-१६६ ।। मि-मो-मु-मे स्सा हा न वा ।। ३-१६७ ॥ भविष्यत्यर्थे मिमोमुमेषु तृतीय त्रिकादेशेषु परेपु तेषामेवादी स्सा हा इत्येतो वा प्रयोक्तव्यौ । हेरपवादौ । पक्षे हिरपि ॥ होस्सामि होहामि । होस्सामो होहामो । होस्सामु होदामु । होस्साम होहाम ।। पर्छ । होहिमि ॥ होहिप्नु । होहिम ॥ क्वचित्तु हा न भवति । हसिम्सामो । इसिहिमो॥ अर्थी--प्राकृत भाषा में भविष्यत्त काल के अर्थ में तृतीयपुरुष के एकवचन में अथवा बहुवचन के धातुओं में जब क्रमशः 'मि' प्रत्यय अथवा मो-मु-म प्रत्यय को संयोजना की जा रही हो तब धूम्रसंख्या ३. १६६ के अनुसार भविष्यत् काल-योनक प्राप्नध्य मस्यय 'हि' के स्थान पर वैकल्पिक प से 'सा' अथवा 'हा' प्रत्यय की भी प्राप्ति हुमा करती है। इस प्रकार से तृतीय पुरुष के स्वपन में प्रथा
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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