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________________ * प्राकृत व्याकरण * [२७६ ] भणामः संस्कृत का अकर्मक रूप है । इसके प्राकृत रूप बारह होते हैं भणमो, भणमु, भणम, भणामो, भणामु, भणाम, मणिमो, मणिमु, भणिम, मणेमो, भणमु और भणेम । इनमें से प्रथम तीन रूपों में सूत्र-संख्या ३-१४४ से मूल प्राकृन-धातु 'भण' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृतीय भाप्तव्य प्रत्यय 'मस' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'मो-मु-म' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर कम से 'भणमो, भणमु और भणम सिद्ध हो जाते हैं । भणामो, भणामु और मणाम में सूत्र संख्या ३.१५४ से मूल प्राकृत-धातु 'भग' में स्थित अन्य स्वर 'अकार' के स्थान पर 'आकार' की वैकल्पिक मा से पति और ३-९४६ पत्र तान रूपों के समान हो 'मो-मु-म' प्रत्ययों को कम से प्राप्ति होकर चौथा, पाँचवां और छटा रूप भगामा, भगाए और भणाम सिद्ध हो जाते हैं। भाणमो, भणिमु और मणिम में सूत्र संख्या ३-१५५ से मूल प्राकुन धातु 'भय' में स्थित अन्त्य स्वर 'अकार' के स्थान पर 'इकार' को वैकल्पिक रूप से प्राप्ति और ३-१४४ से प्रथम तीन रूपों के समान ही 'मो-मु-म' प्रत्ययों को कम से प्राप्ति होकर सातवां, अाठवां और नवां रूप भणिमो, मणिमु और भणिम सिद्ध हो जाते हैं। भणमो, भणेमु और भणे में सूत्र-संख्या ३-१५८ से मूज शकृत-धातु 'मग' में म्बित अन्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'ए' की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति और ३-१४४ से पधम तान रूपों के समान हो 'मो-भुम' प्रत्ययों को कम से प्राप्ति होकर शवां, ग्यारहवां और बारहवां रूप भगेमो, भगे मु और भणे म सिद्ध हो जाता है। तिष्ठामा संस्कृत का क्रियापद रूप है । इसका प्राकृत रूप ठामो होता है । इसमें सूत्र-संख्या ४.१६ से मूल संस्कृत धातु 'स्था' के श्रादेश-मान रूप 'तिष्ठ' के स्थान पर प्राकृत में 'ठा' रूम की श्रादेश प्राति और ३.१४४ से श्रादेश प्राप्त प्राकृत धातु 'ठा' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृतोय प्राप्तन्य प्रत्यय 'मस्' के स्थान पर प्राक्त में 'मो' प्रत्यय को प्राप्ति होकर प्राकन-क्रियापद का रूप 'वामी सिद्ध हो जाता है। भवामः संस्कृत क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप होमो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल संस्कृत-धातु 'भूभव्' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' रूप की आदेश-प्राप्ति और ३-१४४ से आदेश प्राप्त प्राकृत-धातु 'हो' में वर्तमान काल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'मस् के स्थान पर प्राकृत में मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत क्रियापद का रूप होमो सिद्ध हो जाता है। ३-१५५ ।। पते ॥ ३-१५६ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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