SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२८. ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित # moortoooormeroswormstroconsoorroroscomroorkersonsorrormeworroom क्त परतोत इत्त्वं भवति। हसिनं । पढियं । नविगं । हासि। पाढिनं ।। गयं नयमित्यादि तु सिद्धावस्थापेचणात् ।। अत इत्येव । झार्य । लुझं । हुवे ।। अर्थः- अकारान्त धातुओं में यदि भून-कृदन्त का प्रत्यय 'त= लगा हुआ हो तो उन अकारान्त धातुओं के अन्त्य 'अ' के स्थान पर निश्चित रूप से 'इ' की प्राप्ति हो जाती है । जैसे:-हपितम् = हसिश्र = हँसा हुआ; अथवा हँसे हुए को; पठितम् - पढिरं पढ़ा हुश्रा; अथवा पढ़े हुए को; नमितम् = नविश्र - नमा हुआ; अथवा नम हुए को; हाप्रितम्-हातिअं-हंसाया हुआ; पाठितम्याढियं-पढ़ाया हुआ; स्यादि । इन उदाहरणों से ज्ञात होता है कि धातुओं में भूत-कृदन्त-वाचक प्रत्यय 'त = अ' का सद्भाव होने के कारण से मूल धातुओं के अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'इ' की प्राति हो गई है। प्राकृत. भाषा में कुछ धातुओं के भूत-कृदन्तीय-रूप ऐसे भी पाये जाते हैं जो कि उपरोक्त नियम से स्वतन्त्र होते हैं। जैसे-तम-आय-गया हश्रा नलम =नयम =नमा हुश्रा, अथवा जिप्तको नमस्कार किया गया हो-उसको इन उदाहरणों में भूत-पम्लीय-अर्थ का समाव होने पर म नम' में स्थित अन्त्य 'अ' को 'इ' की प्रानि नहीं हुई हैं; इसका कारण यही है कि इनको प्रक्रिया-संस्कृतोय रूपों के आधार से बनी हुई है और तत्पश्चात प्राकृतीय वष्ण-विकारात-नियमों से इन्हें प्राकृत-रूपों की प्राप्ति हो गई है। सारांश यह है कि संस्कृतोय-सिद्ध अवस्था की अपेक्षा से इन प्राकृत-रूपों का निर्माण हुश्रा है और इसी लिये ऐसे रूप इस सूत्र-संख्या ३-१५६ से स्वतन्त्र है; इस सूत्र का अधिकार ऐसे रूपों पर नहीं समझना चाहिये । प्रश्न:-अकारान्त धातुओं में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'इ' को प्रामि हो जाती है। ऐसा ही क्यों कहा गया हैं ? और अन्य स्वरान्त धातुओं में स्थित अन्त्य घर के स्थान पर 'इ' को प्राप्ति क्या नहीं होती है ? उत्तरः-चूँकि अकारान्त धास्थ अन्यस्य 'अ' के स्थान पर ही भूत-कृरन्तीय प्रत्यय के पर रहने पर 'इ' की प्राप्ति होती है तथा दूसरो धातुओं में स्थित अन्य किसी भी अन्त्य घर के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति नहीं होती है, इसीलिये ऐसा निश्ययात्मक विधान प्रदर्शित किया गया है। इसके समर्थन में कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:-ध्यातम् = भायं यान किया हुआ। लूनम - तुझं = कतरा हुका अथवा घोरा हुश्रा, और भूतम् = हूझ = गुजरा हुआ; इत्यादि । इन उदाहरणों में झा, लु और हू' में क्रम से स्थित स्वर 'श्रा, छ, और ' के स्थान पर 'इ' को प्रानि नहीं हुई है। अतएवज्ञप्ती परम्परा भाषा में प्रचलित होती है उसोके अनुसार नियमों का निर्माण किया जाता है; तरनुपार केवल अकारान्त धातुओं में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर हो आगे भूत कान्तीय-प्रत्यय का सद्भाव होने पर 'इ' की प्राप्ति होती है अन्य स्वर के स्थान पर नहीं; ऐसा सिद्धान्त निश्चित हुआ ।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy