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________________ [ २७ ] ** प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित ++ + +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++4444444444 4444 भणिमो भणामो । भणिप्नु भणामु । भणिम भणाम । पक्षे । भागमो। भणमु : भणम ॥ वर्तमाना-मञ्चमी-शतृषुवा (३-१५८) इत्येत्वे तु भणेमो। भणेमु । भणेम ॥ अत इत्येव । ठामो । होमी ॥ अर्थः-प्राकृत भाषा की अकारान्त धातु पो में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे वर्तमानकाल के तृतीय पुरुप के बहुवचन के प्रत्यन शो-मु-म' परे रहने पर वैकल्पिक रूप से 'इ' को प्राप्ति हुआ करती है तथा मूल-सूत्र में चकार होने से उपरोक्त सूत्र-मंख्या ३-१४४ के अनुसार उस अन्त्य 'अ' के स्थान पर इन्हीं 'मो मु-म' प्रत्ययों के परे हम पर वैकल्पिक रूप से 'आ' की प्राप्ति मो हुश्रा करती है। उदाहरण इस प्रकार हैं:-भणामः भणिमो भणामी; मणिमु भणामुभरिणम भणाम, वैकल्पिक पक्ष होने से जहाँ पर अन्त्य 'अ' को 'इ' अथवा 'श्रा' को प्रारित नहीं होगी वहाँ पर 'भणमो, मणमु और भणम' रूप भी बनेंगे । इसी प्रकार से सूत्र-संख्या ३.१५८ में ऐमा विधान निश्चित किया गया है कि'वर्तमानकाल के. श्राज्ञार्थक-विधि-अर्थक लकारों के और वर्तमान-कृदन्त के' प्रत्ययों के परे रहने पर अकारान्त-धातुथों के अन्त्य 'अवारको वैकल्पिक रूप से 'एकार की प्राप्ति भी हुग्रा करतो है: तदनुसार वर्तमानकाल के प्रत्ययों के परे रहने पर अकारान्त धातुओं के अन्त्यस्थ 'अकार' को बैकल्पिक रूप से 'एकार' की प्राप्ति होने का विधान होने से 'मण धातु के उपरांत रूपां के अतिरिक्त ये तीन रूप और बनते हैं:- भणेमो, भणमु और भरणेम; इन बारह ही रूपों का एक ही अर्थ होता है और यह यह है कि हम (सब) स्पष्ट रूप से बालते हैं-स्पष्ट रूप से कहते हैं। इस प्रकार से अन्य प्रकारान्तधातुओं के भो अन्त्यस्थ 'अकार' को वैकल्पिक रूप से 'पा अथवा इ अथवा ए' की प्रारित होने के कारण से वर्तमानकाल के ततीय पुरुष के बहुवचन के प्रत्यय 'मो-मु-म' पर रहने पर बारह बारह रूप बनते हैं। प्रश्नः-अकागन्त-धातुओं के लिये ही ऐसा विधान क्यों किया गया है ? अन्य स्वरान्त धातुओं के अन्त्यस्थ स्वर के सम्बन्ध में ऐसा विधान कयों नहीं बदलाया गया है ? उत्तर:-अन्य स्वरान्त धातुओं के अन्त्याथ स्वर को आगे वतमानकाल के प्रथयों के परे रहने पर किसी भी प्रकार को स्वरात्मक-ग्र देश-प्राति नहीं पाई जाती है; श्रतएव प्रचलित परम्परा के प्रतिकूल विधान कैसे बनाया जा सकता है ? जैस कः-तिष्ठामः = ठामो-हम ठहरते हैं; भवामः - होमो हम होते हैं। इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि 'ठा और हो धातु कम से प्राकारान्त और प्रोकारान्त है; अतएव इन अस्बा एसो हो अन्य धातुओं के अन्त्यास्थ स्वर 'आ अथवा यो अथवा अन्य स्वर' को आगे पुरुष वोधक प्रस्थयों के परे रहने पर भी प्रकार के समान 'पा अथवा इ अथवा ए अथवा अन्य स्वर' श्रामक वैकल्पिक श्रादेश-प्राप्ति नहीं होती है। इसलिये केवल धातु स्य अन्त्य 'अकार' के संबंध में ही ग्रन्थकार ने उक्त विधि-विधान बनाना उचित समझा है और अन्य अन्यस्थ घरों के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के विधि विधान की आवश्यकता का अनुभव नहीं किया है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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