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________________ [ २५६ ] *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * moot0rporosorrovestostonstresssss.orresporneroseron.000000000000000 स्वम संस्कृत का युष्मद् सर्वनाम का प्रथमाविभक्ति का एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक रूप है । इसका प्राकृत रूप तुम होता है इसमें सूत्र संख्या ३-९० से प्रथमाविभक्ति के एफवन में तया तीनों लिंगों में समान रूप से ही प्रथमा-विभ उघोषक प्रत्यय 'मि' की योजना होने पर सम्पूर्ण संस्कृत पर 'स्वम्' के स्थान पर प्राकृत में 'तुम रूप सिद्ध हो जाता है । ३-१४६ ।।। मि-मो-मै-हि-म्हो-म्हा वा ॥ ३-१४७ अस्तेर्धातोः स्थान मि मी म इत्यायशः स यथासंहप हि हो म्ह इत्यादेशा वा भवन्ति ॥ एस म्हि । एषो स्मीत्यर्थः ।। गय म्हो । गय म्ह। मुकारस्याग्रहणादप्रयोग एव तस्येत्यवसीयते । पक्षे अस्थि अहं । अस्थि अम्हे । अस्थि अम्हो ।। ननु च सिद्धावस्थायां पक्ष्म शम-म-स्मामा म्हः (२.७४। इत्यनेन म्हादेशे म्हो इति सिध्यति । सत्यम् । किंतु विभक्तिविधौ प्रायः साध्यमानावस्थाङ्गोक्रिपो । अन्यया वच्छे । वच्छे पु । सव्वे । जे । ते । के । इत्यादर्थ सूत्राण्यनारम्भणीयानि स्युः॥ अर्थः-'अस्' धातु के साथ में जब सूत्र-संख्या ३-१४१ से वर्तमानकान के तृतीय पुरुष के एकवचनात्मक प्रत्यय 'मि' को संयोजना की जाय तो वैकल्पिक रूप से धातु 'अस्' और प्रत्यय 'मि' दोनों ही के स्थान पर म्हि' पद की प्रादेश-प्राप्ति हुआ करती है । जैसे- एषोऽस्मि-एस मिह - मैं हूं । वैकल्पिक पक्ष होने से जहाँ पर 'हि' नहीं किया जायगा वहाँ पर सूत्र संख्या ३-१४८ के आदेश से संस्कृतीय रूप 'अस्मि' के स्थान पर 'अस्थि' पद की प्राप्ति होगी। इसी प्रकार से इसी 'अस' धातु के साथ में जब सूत्र-संख्या ३-१४४ से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचनात्मक प्रत्यय 'मो' एवम् 'म' की योजना की जाय तो वैकक्षिपक रूप से घातु 'अस्' और प्रत्यय 'मो' एवं 'म' दोनों ही के स्थान पर क्रम से 'म्हो' तथा 'मह' पद की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। बाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:गताः स्मः गय म्हो हम गये हुए है । गताः स्मः हम गये हुए हैं । यो वतमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृतीय धातु 'अस' से 'मर' प्रत्यय को संयोजना होने पर प्राप्त संस्कृतीय पद 'स्मा' के स्थान पर प्राकृत में कम से तथा वैकाल्पक रूप से 'मो और म' प्रत्ययों के सद्भाव में 'म्हो तथा म्ह पद की भादेश-प्रामि जानना । वैकल्पिक पक्ष होने से जहा पर हो तथा ' रूपों की प्राप्ति नहीं होगी; वहाँ पर सूत्र-संख्या ३-१४८ के आदेश से संस्कृताय रूप 'स्मः' के स्थान पर 'अस्थि' आदेश प्राप्त पद की प्राप्ति होगी। सूत्र-संख्या ३-१४४ में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचनार्थ में धातुओं में जोड़ने योग्य तीन प्रत्यय 'मो, मु और म' बतलाये गये हैं। जिनमें से इस सूत्र में 'अस्' धातु के साथ में जुड़ने योग्य केवल दो प्रत्यय 'मी तथा म' का ही उल्लेख किया है और शेष तृतीय प्रत्यय मु' को छोड़ दिया है। इस पर से निश्चयात्मक रूप से यही जानना चाहिप कि 'यह' धातु के साथ में 'मु' प्रत्यय का प्रयोग नहीं किया जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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