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________________ [ २१६ ] प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * morrecortersnessmanarsisterest.resmenorreareerustratoriessatan 'कार्य' रूप को सिद्ध सूत्र-संख्या १.१२८ में की गई है। मालायाः संस्कृत पञ्चमी विभक्ति का एकवचनान्न स्त्रीलिंग रूप है । इसके प्राकृत रुत मालाओ. मालाड, मालाहिन्तो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-८ से और ३-१२४ के निर्देश से पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रामव्य प्रत्यय 'जमि-असभ्याः ' के स्थान पर प्राक़त में कम से 'ओ, उ, हिन्तो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से प्राकृतीय रूप मालाओ, मालाउ, मालाहिन्ती सिद्ध हो जाते हैं। खुख्याः संस्कृत पञ्चमी विमति का एकवचनान्त स्त्रीलिंग कप है । इसके प्राकृत रूप बुीओ. बुद्धोउ, बुधौहिन्तो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३.१२ से मूल शब्द चुद्धि में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'इ' के श्रामे पञ्चमी विभक्ति के एकवचनान्त प्रत्ययों का सद्भाव होने से दोर्घ स्वर 'ई' की प्रानि; तत्पश्चात ३.८ से और ३-१२४ के निर्देश से पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतोय प्रामध्य प्रत्यय 'इंसि-प्रसमस पास' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'श्री. 'उ, हिन्तो' प्रत्ययों को प्रानि होकर क्रम से प्राकृतीय रूप बुद्धीओ, बुद्धीउ, बुद्धीहिन्तो, सिद्ध हो जाते हैं। 'धेणूओ, भेषाउ, धे]हिन्तो' रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या ३१९ में की गई है। 'भागओ' रूप की सिवि सूत्र-संख्या १.३०९ में को गई है। मालाभ्यः संस्कृत पञ्चमी विभक्ति का बहुवचनान्त वालिंग रूप है । इसके प्राकत रूप मालाहिन्तो, मालासुन्तो होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या ३-६ से पंचमी विभक्ति के बटुवचन में संस्कनीय प्राप्तन्य प्रत्यय भ्यस्त के स्थान पर प्राकृत में क्रम से हिन्तो, सुन्तो प्रत्ययों की प्राप्ति होगर प्राकृतीय रूप मालाहिन्तो, माला सुन्तो क्रम से सिद्ध हो जाते हैं। गिरिभ्यः संस्कृत पञ्चमो विभक्ति का बहुवचनान्त पुल्लिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप गिरीहिन्तो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.१६ से मूल रूप गिरि में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर ३' की प्राप्ति और ३-६ से पचमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय भ्यस के स्थान पर प्राकृत में हिन्तो प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृतोय रूप गिरीहिन्तो सिद्ध हो जाता है। 'गिरिस्स' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३.२३ में की गई है। गुरोः संस्कृत षष्ठी विभक्ति का एकवचनान्त पुल्लिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप गुरुस्स होता है । इममें सूत्र संख्या ३.१० से और ३-१२४ के निर्देश से षष्ठो विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रातव्य प्रत्यय 'छम-अस' के स्थान पर प्राकृत में 'स्स' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुरुस्स रूप मिड हो जाता है । दस्तः संस्कृत षष्टी विभक्ति का एकवचनान्त नपुसकलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप दहिस्स होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१८ से मूल संस्कृत रूप दधि में स्थित ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१० से और ३-१२४ के निर्देश से षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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