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________________ * प्राकृत व्याकरण * 00000kboterotica.odesorderstakoscoww0xs000000000000000000000000 सखीनाम् संस्कृन षष्ठी विभक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रुप सहीण होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-६ से प्राम रूप सही में षष्ठी विभक्ति के बहुवचनार्थ में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'श्राम् = काम' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृन रूप सहीण सिद्ध हो जाता है। बधूनाम् संस्कृत षष्ठी विक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप बहूण होता है । इसमें भी अपरोक्त सहीण रूप के समान ही सूत्र-संख्या १-१८७ और ३.६ से क्रम से 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और षष्टी बहुवचनार्थ में प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पहण रूप सिद्ध हो जाता है। 'भणं' संज्ञा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या :-२० में की गई है। मालाभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त त्रीलिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप मालाहि होता है । इसमें सूत्र संख्या 3-9 से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय मिस् के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप मालाह सिद्ध हो जाता है। गिरिभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त पुर्तिलग रूप है । इसका प्राकृत रूप गिरोहि होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.१६ से मून प्राकन शव गिरि में स्थित अन्त्य हर स्वर 'इ' के आगे तृतीया बहुवचनान्त प्रत्यय का प्रभाव होने से दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति और ३-७ मे तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तग्य प्रत्यय भिम् के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप गिरीहि सिद्ध है आता है । गुरुभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप गुरूहि होता है। इसमें मत्र-संख्या ३-१६ से मूज शम्भ गुम में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'पु' के भागे तृतीया बहुवचनान्त मत्यय का सद्भाव होने से दोघं स्वर 'ऊ' की प्राप्ति और ३-७ से हतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीव प्राप्तध्य प्रत्यय 'भिमके स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुरूह रूप सिद्ध हो आता है। " सखीभिः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप सहीहि होना है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-9 से तृतीया विमति के बहुववन में संस्कृतीय प्राव्य पत्यय भिम' के स्थान पर प्राकृन में 'हि' प्रत्यय यो प्राप्ति होकर सही रूप सिद्ध हो जाता है । धामः संस्कृत तृतीया विभक्ति का बहुषचनान्त स्त्रीलिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप वहूदि होता है। इसमें सूत्र-मररूपा १.१८७ से 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतोत्र प्रापण प्रत्यय 'मित्' के स्थान पर प्राकृत में "हि' प्रत्यय की प्राप्ति कर अनूहि रूप सिद्ध हो जाता है ।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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