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* प्राकृत व्याकरण * orrorrecoronwrosorrotso.00000oorrearrorrorosonsorsteron.000000000000000
चतुर् शब्दस्य जस्-शसम्पां सह चत्तारो चउरो चत्तारि इत्येते आदेशा भवति ।। चत्तारो। चउरो । चत्तारि चिट्ठन्ति पंच्छ वा ।।
अर्थ:-संस्कृत संख्या वाचक शब्द 'चतुः = (चार) के प्राकृत-कमान्तर में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में 'जम्' प्रत्यय परे रहने पर तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन म 'श' परे रहने पर दोनों विभक्तियों में ममान रूप से 'मून शब्द और प्रत्यय' दोनों के ही स्थान पर तीन रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार है:--प्रथमा के बहुवचन में संकृताय रूप चत्वारः के प्राकृत रूपान्तर 'चत्तारो, चररों ओर चत्तारि तथा द्वितीया के महुवचन में सस्कृतोय रूप चतुरः के प्राकृत रूपान्तर में 'चत्तारो, चारो और चत्तारि' ही होते हैं । यो प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन में लगे का समानता ही जानना चाहिये । वाक्यात्मक दाम इस प्रकार है- तिष्ठन्त - चना, चउगे, चसारि चिन्ति अर्थात् चार (व्यक्ति) स्थित हैं। चतुरः पश्य - चतारा, चा, चत्तारि पेच्छ अर्थात् चार (व्यक्तियों) को देखो।
चत्वारः संस्कृत प्रथमा बहुवचनान्त संख्यात्मक मर्वनाम ( और विशेषण ) रूप है। इसके प्राकृत रूप चत्तारो, चारो और चत्तारि होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१२२ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'जम' परे रहने पर मूल शब्द 'चतुर और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर उक्त तानों रूपों की प्रादेश-प्राप्ति होकर (कम से ) नीनों रूप चत्तारो, चउरो और चनारि सिद्ध हो जाते है।
चतुरः संस्कृन द्वितीया बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है । इसके प्राकृत रूप चत्तारो, चउरो और चत्तारि होते हैं । इनमें भा सूत्र-संख्या ३.१२२ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तध्य प्रत्यय 'शम' पर रहने पर मूल शब्द 'चतुर और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर उक्त तीनों रूपों की आदेश-प्राप्ति होकर (क्रम से) तीनों रूप घसारो, चउरी और चत्तारि सिद्ध हो
जाते हैं। ..
चिटठान्ति क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या-70 में की गई है। "पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १.१ में की गई है । ३-५२२ ।।
संख्याय। आमो राह रहं ॥ ३-१२३ ॥ संख्या शब्दात्परस्यामो यह एह इत्यादेशी भवतः ॥ दोह। तिण्ह । चउण्ह । पञ्चपह । घण्ह । सत्तण्ह । अट्टाह ।। एवं दोपहं । तिगई । चउण्हं । पश्चएहं । छगहँ । सत्ताह । अदुव्हं ।।