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________________ [१६६ ] *प्राकृत व्याकरण 0000000000000000000000000000rstenttorestrosses.6000000000000 रूप तक दोनों अंगों में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर सूत्र संख्या ३.१३ से वकालपक रूप से 'श्रा' को प्राप्ति एवं सात तथा पाठ दोनों अंगों में स्थित अन्त्य स्वर, प्र' के स्थान पर सूत्र-मंख्या -१५ से (वैकल्पिक रूप से ) 'ए' को प्राप्ति और ३-६ से उपरोक्त आठों अंग रूपों में पचमी विभक्ति के बहुवचन में कम से 'तो, हिन्ती और सुन्ती' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर आठों ही रूप-ममनी, अम्हत्तो, ममाहिन्तो, अम्हाहिन्तो, ममान्तो, अम्हासुन्तो, ममेसुन्तो और अम्हेसुन्नी' सिद्ध हो जात हैं । ३-११२ ॥ मे मह मम मह मह मझ मज्भं अम्ह अम्हं उसा ॥३-११३॥ अस्मदो उसा पष्ठयेक वचनेन सहितस्य एते नवादेशा भवन्ति ॥ में मह मम मह महं मझ मज्झं अम्ह अहं धणं । अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद् के प्राकृत रूपान्तर में पष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रामव्य प्रत्यय 'इस-प्रस' के प्राकृतीय स्थानीय प्रत्यय स प्राप्त होने पर 'मून्न शठन और प्रत्यय' दोनों के ही आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'मम' अथवा 'मे' के स्थान पर प्राकृत में षष्ठी एकवचनार्थ में नव रूपों की कम से आदेश-प्राप्ति हुआ करती है। जो कि इस प्रकार है:-मम अथवा मेन्मे, मइ, मम, मह, महं, मम्म, मझ, अम्ह और अम्हं अर्थात मेरा । उदाहरणः-- म अथवा में धनम्-मे-मइ-मम-मह-महंमझ-मझ-अम्ह बम्हं धणं अर्थात् मेरा धन | ___ मम अथवा मे संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त (त्रिलिंगास्मक) सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप नव होते हैं। मे. मा, मम, मह, मह, मझ, मन्झ श्रम्ह और अम्ह । इनमें सूत्र-संख्या ३-१९३ से मुल मस्कत शब्द 'अस्मद्' के षष्ठी विभक्ति के एकत्रचन में प्राप्त रूप मम अथवा में के स्थान पर प्राकृत में उपरोक्त नव ही रूपों की श्रादेश-प्राप्ति होकर कम से ये ना हो रूप में, मह, मम, मह, महं, मझ, मन, अम्ह और अम्हे सिद्ध हो जाते हैं । 'धणं' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या 3-40 में की गई है । ३-११३ ।। णे णो मज्म अम्ह अम्हं अम्हे अम्हो अम्हा ममाण महाण मज्झाण आमा ॥ ३-११४ ॥ अस्मद् आमा सहितस्य एते एकादशादेशा भवन्ति ।। यो णो मज्झ अम्ह अहं अम्हें अम्हो अम्हाण ममाण महाण मज्झाण धर्ण ॥ क्वा-स्यादेर्ण-स्वोर्या (१-२७) इत्यनुस्वारे । अम्हाणं । ममाणं । महार्ण । मज्झनणं । एवं च पञ्चदश रूपाणि ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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