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________________ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ १६५ ] Herrestretworkshore romosomvokestrwsness.orrentortoonserton... अगओं कप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२०९ में की गई है। मत्तः सकृन विशेषणामक रूप है । इसका प्राकृत रूप मत्तो होता है । इस सूत्र-संख्या ३.२ से मा विभास पचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-यो' प्रत्यय की प्रारित होकर प्राफत-रूप मत्ती सिद्ध हो जाता है । ३-१११ ।। ममाम्ही भ्यसि ॥३-११२ ॥ अम्मदो भ्यसि परतो भम अम्ह इन्यादेशौ भवतः । भ्यसस्तु यथा प्राप्तम् ।। ममत्तो । अम्हत्तो । ममाहिन्तो अम्हाहिन्तों । ममासुन्तो । अम्हासुन्तो । ममेसुन्तो । अम्हेसुन्सी ।। अर्थ:--संस्कृत मवनाम शब्द 'शम्मद' के प्राकृत रूपान्तर में पञ्चमी-विभक्ति के बहुवचन में संम्वृ त्तीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'भ्यस' के स्थान पर प्राकृतीय प्राप्तन्य प्रत्यय जी, दो, दु हि, हिन्ना और मुन्तो' प्राप्त होने पर मूल संस्कृत सर्वनाम शद 'अस्मद्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से दी अंग रूपों को आदेश प्राप्ति हुश्रा करती है। वे प्रामव्य अंग रूप इस प्रकार हैं:-'मम और अम्ह' । इस प्रकार आदेश प्रान इन दोनों अंगों में से प्रत्येक अंग में पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में सूत्र संख्या ३-६ के अनुमार छह छह प्रत्यय प्र.म से संयोजित होते हैं; यो अस्मद्' के पक्षमा बहुवचन में संस्कृतीय प्राम कप 'अस्मत' के प्राकृत-रूपान्तर में बारह रूप होते हैं; जो कि क्रम से इस प्रकार है: मंस्कृत अस्मत = (मम के रूप = ) ममचो, ममाओ, ममात्र, ममाहि, ममाहिन्ती और ममासुन्तो । ( अम्ह के ) = अम्हन्ती, अम्हाओ, अम्हाउ, अम्हाहि, अम्हाहिन्तो और अम्हासुन्तो । सूत्र संख्या ३.१५ से उपरोक्त प्राप्तांग 'मम' और 'अम्' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'एका प्रानि धैकल्पिक रूप से हि. हिन्तो और सुन्तो' प्रत्यय प्राप्त होने पर हुआ करती है; तदनुमार प्रत्येक अंग रू.ए के नीन तीन रूप और होते हैं; जो कि इस प्रकार हैं:--मम के रूप = ममेहि, ममहिन्तो और ममेमुन्नी । अह के रूप = अम्हेह, अम्हेहिन्तो, और अम्हेसुन्तो । यो उपरोक्त चारह रूपों में इन छ: रूपों को और जोड़ने से पञ्चमी बहवचन में संस्कृत रूप 'अस्मत' के प्राकृत में कुल अठारह रूप होते है । ग्रंथकार में वृत्ति में 'अस्मत' के ऋवल आठ प्राकृत रूप ही लिखे हैं; अनएष इन पाठों रूपों का माधानका निम्न प्रकार से है: अस्मत् संस्कृत पञ्चमी बहुवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत आठ रूप इस प्रकार हैं: ममतो, अमहतो, मभाहिन्तो, अम्हाहिन्तो, ममासुन्तो, अम्हासुन्तो, ममेसुन्नो और अम्हेसुन्तो। इनम सूत्र संख्या ३-११२ से पंचमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय सर्वनाम शब्न 'अस्मद्' के स्थान पर प्राकृत में दो अंग रूप 'सम और अम्ह' को प्राप्ति; उत्पश्चात् तीसरे रूप से प्रारम्भ कर के छद्र
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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