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________________ [ १६४ ] ********668968564409944 दोश्रो, दु=उ, हि, हिन्दी और लुक की कम से प्राप्ति होने पर 'अरमदू' के स्थान पर प्राकृत से में क्रम चार अंग रूपों की प्राप्ति होती है। वे चारों अंग रूप क्रम से इस प्रकार है: - (अस्मद् ) मद्द, भ्रम, मह और ase | इन प्राप्तांग चारों रूपों में से प्रत्येक रूप में पंचमी विभक्ति के एक वचनार्थ में क्रम से 'सी, दोश्रो, दु. = उ, हि हिन्तो और लुक अत्ययों की प्राप्ति होने से कचमी एक वचनार्थक रूपों की संख्या होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार है: 00000440 * प्राकृत व्याकरण * 'मह' के रूपः - ( अस्मद् के मत् अथवा मद्- ) महतो, मईओ, मर्द भई महिला और भई । अर्थात् मुझ से ) 'मम' के रूप--( सं . म अथवा मदु = ) ममतो ममाओ, ममाव, ममाहि ममाहिन्तो और ममा तमु सं ) । 'मह' के रूप - (सं. – मत अथवा मद् = ) महत्तो, महाश्री, महाउ, महाहि महाहिन्तो और महा । (अर्थात् मुझ से ) . मज्म' के रूप - ( संमत् अथवा मद् = ) मज्झतो, मज्झाओ, मञ्झाव, मञ्झाहि, मझाहिन्तो और मझो। (अर्थात मुझ से ) वृति में प्रदर्शित उदाहरण इस प्रकार है: - मन (मदु) आगतः = महत्तो मम सो-महतो मन्मत्ती धागओ अर्थात मेरे से- ( मुझ से ) अश्या हुआ है । संस्कृत में 'मत्त' विशेषत्मक एक शब्द है; जिसका अर्थ होता है-मस्त, पागल अथवा नशा किया हुआ; इस शब्द का प्राक्रत-रूपान्सर भी 'मत्त' ही होता है; तदनुसार प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में सूत्र संख्या ३-२ के अनुसार इसका रूप 'मत्तो' बनता है। इसलिये ग्रंथकार वृत्ति में लिखते हैं कि संस्कृत में पंचमी विभक्ति के एकवचन में 'अस्मद' के प्राप्त रूप 'मत' को प्राकृत अंगरूप की अवस्था मानकर 'तो' प्रत्यय लगाकर 'मतो' रूप बनाने की भूल नहीं कर देना चाहिये | बल्कि यह ध्यान में रखना चाहिये कि प्राकृतीय प्राप्त रूप 'मत्ती' की प्राप्ति अंगरूप 'मत' से प्राप्त हुई है । 'मन् अथवा मद्' संस्कृत पस्चमी एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप मत्ती, ममत्त महत्ती और मक्कत्ती होते हैं । इनमें सूत्र संख्या ३-१११ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के स्थान पर पञ्चमी के एकवचन में प्राप्तथ्य प्रत्ययों की संयोजना होने पर प्राकृत में उक्त चारों अंग रूपों की कम से प्राप्ति एवं ३ से प्राप्तांग यारों में पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय रस अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'तो' आदि प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति होकर उक्त चारों रूप 'महत्तो, ममत्तो, महतो और मतो क्रम से सिद्ध हो जाते हैं।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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