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________________ * प्रियादय हिन्दी व्याख्या सहित ************6667 24406040044&&&&&&�666400�6❖. कथं किया रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१६ में की गई है। १०६ ।। अहि हाहि अह अहे थे भिसा ॥ ३-११० ।। [ १६३ ] 'मया' संस्कृत तृतीया एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'भि, मे, मम मम ममाइ, म मग, मयाइ और गं होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २ १०६ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द अम में तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' को संप्राप्ति होने पर प्राप्त रूप 'मया' के स्थान पर प्राकृत में उक्त नत्र रूपों की क्रम से आदेश प्राप्ति होकर ये नत्र ही रूप 'मि, में, ममं, ममए, ममाइ, मइ, मए, मयाइ और के' सिद्ध हो जाते हैं। **$**** श्रस्मदो भिसा सह एते पश्चादेशा भवन्ति ।। अम्हेहि अम्हाहि श्रम्ह श्रम्हे से कर्म ॥ अथ:- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'श्रस्मद्' के तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'मिसू' की संयोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कृत-रूप'अस्माभिः' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से पाँच रूपों की आदेश-प्राप्ति हुआ करती है। वे आदेश प्राप्त पाँच रूपम से इस प्रकार हैं: - (अस्माभिः = ) अहि अम्हाहि श्रम्ह, अहे और में । उदाहरण इस प्रकार है: - श्रस्माभिः कृतम् श्रमदेहि अम्हारि श्रम्ह, कम्हे, कयं अर्थात हम सभी से अथवा हमा से किया गया है । 'कर्य' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१२६ में की गई है । ३-११०, मइ-मम-मह- मज्झा ङसौ ।। ३-१११ ।। अस्माभिः संस्कृत तृतीया बहुवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप अम्देहि, म्हाहि श्रम्ह अम्हे और 'णे' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३-११० से संस्कृत- सर्वनाम शब्द अस्मद् में तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'भिस्' की संयोजना होने पर प्राप्त रूप 'अस्माभिः' के स्थान पर प्राकृत में उक्त पाँचों रूपों की कम से आदेश प्राप्ति होकर क्रम से ये पाँचों रूप 'अहोई, अम्हाहि, अम्ह, अम्हे और ये सिद्ध हो जाते हैं। प्रस्मदो सौ पञ्चम्पेकवचने परत एते चत्वार आदेशा भवन्ति ॥ ङसेस्तु यथा प्राप्तमेव || महतो - ममतो- महतो मज्झतो आगो || मत्तो इति तु मत इत्यस्य ।। एवं दो-दुहि- हिन्तो वप्युदाहार्यम् ॥ अर्थ :-- संस्कृत सर्वनाम 'अस्म' के प्राकृत रूपान्तर में पंचमी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय माप्तम्ब प्रत्यय 'कसि असू' के स्थान पर सत्र संख्या २०८ के अनुसार प्राकृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'तो,
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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