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________________ * प्रियादय हिन्दी व्याख्या सहित - [१६७ ] .0000000reworstoorenorrooros000000ormineroseroesrrrrosorrowonrotion अर्थ:--संस्कृन सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के षष्ठी-विभक्ति के महूवचन में संस्कृतीय प्रामव्य प्रत्यय 'श्राम की मयोजना होने पर 'मूल शब्न और प्रत्यय दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'अस्माकम् अथवा नः के स्थान पर प्राकृत में अर्थात प्राकृत मूल शब्द और प्राप्त प्रत्यय 'ण' दोनों के हो स्थान पर कम से ग्यारह रूपों की आदश-प्राग्नि हुआ करती है। ये ग्यारह ही रूप इस प्रकार है:अम्माकम् अथवा नाणे, गो, मझ. 'अम्ह, अम्ह. अम्हं, अहो, आम्हाण. पण, महाए, और मज्माण । उदाहरण इम प्रकार है:-भस्माषम अथवा न: धनम् = रणे णो-मम-ग्राम्ह-अम्ह-अम्हे-धम्होअम्हाण-ममाण-महाण-ममाण धण अर्थात् हम मी का ( अथवा माग) धन (है)। सूत्र-संख्या १-२७ में ऐसा विधान प्रदर्शित किया गया है कि-पटी विभक्त के बटुवचन में प्राप्तव्य प्राकृतीय प्रत्यय 'ण' के ऊपर अर्थात् अन्त में वैकल्पिक रूप से अनुस्वार का प्राप्ति हुआ करती हे; तदनुसार उपरोक्त ग्यारह रूपों में से पाठवें रूप से प्रारम्भ करके ग्यारहवें रूप तक अर्थात इन चार रूपों के अन्त में स्थित एवं षष्ठा-विभक्ति के बहुवचन के अर्थ में संभावित प्रत्यय 'ण' पर धैकल्पिक रूप से अनुस्वार की प्राप्ति होती है, जो कि इस प्रकार है:-अम्हाणं, ममाणं, महाणं और मझाणं । यो अस्माकम् अथवा नः' के प्राकृत-रूपान्तर में उपरोक्त ग्यारह रूपों में इन चार रुपों को और संयोजना करने पर प्राकृत में षष्ठी-विभक्ति के बहुवचन में कुल पन्द्रह रूप हान है। अस्माकम अथवा नः संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त त्रिलिंगात्मक सवनाम मप है। इसके प्राकून रूप पन्द्रह होते हैं । गणे, यो, मझ, अम्ह, अम्हं, अम्हे, अम्हा. अम्हमाण, ममाण, महाण, मज्माण, अम्हाणं, ममाण महाणं और माणं । इनमें से प्रथम ग्यारह रूपां में सूत्र-सख्या ३-११४ से षष्ठी विभक्ति के बहुववन में संस्कृत मूल शब्द 'अस्मद् में पानध्य प्रत्यय 'श्राम' के योग से प्राप्त रूप 'अस्माकम् अथवा नः के स्थान पर उक्त प्रथम ग्यारह रूपों की आदेश प्रानि होकर 'ण, णो, मा. अम्ह, अम्हं, अम्, अम्हो, अम्हाण, ममाण, महाण और मज्माण इस प्रकार प्रथम ग्यारह रूप सिद्ध हो जाते हैं। शेष चार रूपों में सूत्र-संख्या १-२७ से : चारहवें रूप से प्रारंभ करके पन्द्रह रूप तक में) षष्ठी विभक्ति बहुवचन बोधक प्रत्यय 'ग' का मद्भाव होने से इस प्रत्यय रूप 'ग' के अन्त में आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति होकर शेष चार 'अम्हाणं, ममाण, महार्ण और मज्झा' भी सिद्ध हो जासे हैं । ३-११४ ॥ मि मइ ममाइ मए मे डिना ॥ ३-११५ ।। अस्मदो बिना सहितस्य एते पश्चादेशा भवन्ति ।। मि मइ ममाइ मए मे ठिअं॥ अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्न 'अस्मद्' के मप्रमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रात्तव्य प्रत्यय लिइ की संयोजना होने पर 'मूल शम्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'ममि' के स्थान पर प्राकृत में (प्रातीय मूल शब्द और प्रातभ्य प्राकृतीय प्रत्यय दोनों के ही स्थान
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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