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________________ [ १४६ ] *प्राकृत व्याकरण * .0000000000000000rrofessoorrearreroorkersonastessertersneosreasoo. विभक्त्ति के एकवचन में पुल्लिग में संस्कृतीय प्रत्यय 'दा' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से, खिणा इणा' प्रत्यय की श्रादेश-प्राप्ति होकर प्रथम रूप जिणा सिद्ध हो जाता है। जेण की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३६ में की गई है। तन संस्कृत तृतीय! एकवचनान्त पुल्लिग के सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप तिणा और तेण होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'द्' का लोप; और ३.६६ से प्राप्तांग 'त' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में पुल्लिग में संस्कृतीय प्रन्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से विणा = इणा' प्रत्यय की प्रादेश-प्राप्ति होकर प्रथम रूप लिणा' सिद्ध हो जाता है। तेण की सिद्धि सूत्र संख्या १.३ में की गई है। ३.६६ ॥ तदो णः स्यादी क्वचित् ॥ ३-७० ।। तदः स्थाने स्यादौ पर' '' श्रादेशी भवति कविर समानुवाच । शं पेच्छ । तं पश्ये.. त्यर्थः ॥ सोअह अणं रहुई। तमित्यर्थः ।। त्रिपामपि । हत्थुन्नामिन-मुही णं तिमा। तां त्रिजटेत्यर्थः ॥ गेण भणि । तेन भगितमित्यर्थः ॥ तोणेण का-यज-दिया। तेनेत्यर्थः ।। मणिग्रं च णाए । तयत्यर्थः ॥णेहि कयं । तैः कृतमित्यर्थः । णाहिं कयं । नाभिः कृतमित्यर्थः । अर्थ:-कभी कभी लक्ष्य के अनुमार मं अर्थात संकेनित पदार्थ के प्रति दृष्टिकोण विशेष से संस्कृत सर्वनाम 'तद् के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में विभक्ति-बोधक प्रत्ययों के परे रहने पर 'ण' अंग रूप आदेश का प्राप्ति ( वैकल्पिक रूप से ) हुआ करती है । जैसे-तम् पश्य-णं पेच्छ अर्थात् उसको देखो । शोचति च तम् रघुपतिः= पोश्रइ अ णं रघुबई अर्थात रघुपनि उसको चिन्ता करते हैं-शोक करते हैं। प्रालिंग' में भी 'तद्' सर्वनाम के स्थान पर 'ण' अथवा 'णा' अंग रूप श्रावेश को प्राप्ति पाई जाती है। जैसे हस्तांनामित-मुवी ताम् त्रिजटा हत्थुम्नामिअ-मुही ऐ तिला अर्थात हाथ द्वारा ऊंचा कर रखा मुंह को जिसने ऐसी त्रिजटा नामक राक्षसिनी ने उस (ही । को........... ( वाक्य अधूरा है)। तन भरिणतम-गणेण भणि अर्थात उसके द्वारा कहा गया है । तस्मात तेन कर-तल स्थिता ती गेण करबल-दिमा अर्थात् म कारण से उसके द्वारा हथेली पर रखी हुई " " " "( वाक्य अधूरा है)। भणितम् च तया=भगधे च पाप अर्थात् उस द्वारा-( उस श्री के द्वारा)-कहा गया है। तेः कृतम् - रोहिं कयं अथात उनके द्वारा किया गया है । तामिः कृतम् =णाहिं कयं अर्थात उन (स्त्रियों ) के द्वारा किया गया है। इन उदाहरणों में यह समझाया गया है कि पुल्लिग अवस्था में अथवा स्त्रीलिंग अवस्था में (भी) अनेक विभक्तियों में तथा एकवचन में अथवा बहुवचन में (भी) संस्कृतीय सर्वनाम 'तद्' के स्थान पर प्राकृन में 'ण' अंग रूप ( अथवा स्त्रीलिंग में 'णा' अंग रूप) आदेश-प्राप्ति कमी कमी पाई
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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